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________________ ५, ६, २३७ ) घणानुयोगद्दारे सरीरपरूवणाए णामणिरुत्ती ( ३२३ कम्मइयसरीरदध्ववग्गणाओ ओगाहणाए । मणदव्ववग्गणाओ ओगाहणार असंखेज्जगुणाओ । भासादव्ववग्गणाओ ओगाहणाए असंखेज्जगुणाओ । तेयासरोरदव्ववग्ग - णाओ ओगाहणाए असंखेज्जगुणाओ । आहारसरीरदव्ववग्गणाओ ओगाहणाए असंखे० गुणाओ । वेव्वियसरी रदव्ववग्गणाओ ओगाहणाए असंखेज्जगुणाओ | ओरालिय सरीरदव्यवग्गणाओ ओगाहणाए असंखे० गुणाओ त्ति । एदेहि उराले हि पोग्गलेहि भवमिदि ओरालियं अथवा उरालं जेठ पहाणमिदि एयट्ठो | उदारसद्दादो उरालसद्दनिष्पत्तीए कथमोरालियसरीरस्स महल्लत्तं ? जिव्वुइगमण हे दुअट्ठारस सीलसहस्सुप्पत्तिणिमित्तभावादो । तम्हि उराले भवमोरालियं । अथवा उरालमेव ओरालियमिदि घेत्तव्वं । ओरालियसरीरमोगाहणाए चेव सेससरी रेहितो महलं, ण पदेसग्गेण विस्सासुवचएहि वा त्ति कथं णव्वदे ? सव्वत्थोवा ओरालियसरीरस्स जाणासमयसंचिदपदेसा । वेउब्विययरीरस्स णाणासमयसंचिदपदेसा असंखे० गुणा । को गुण ० ? सेडीए असंखे ० भागो आहारसरीरस्त णाणासममसंचिदपदेसा असंखे० गुणा । को गुण ० ? सेडीए असंखे ० भागो | तेजासरीरस्स णाणासमयसंचिदपदेसा अनंतगुणा । को गुण ० ? अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो सिद्धाणमणंतभागो | कम्म यसरी रस्स अवगाहन की अपेक्षा सबसे स्तोक हैं । मनोद्रव्यवर्गणायें अवगाहनाकी अपेक्षा असंख्यातगुणी है । भाषाद्रव्यवर्गणायें अवगाहनाकी अपेक्षा असंख्यातगुणी हैं । तैजसशरीरद्रव्यवर्गणायें अवगाहना की अपेक्षा असंख्यातगुणी हैं । आहारकशरीरद्रव्यवर्गणाये अवगाहनाकी अपेक्षा असंख्यातगुणी हैं । क्रियिकशरीरद्रव्यवगंणायें अवगाहनाकी अपेक्षा असंख्यातगुणी हैं । औदारिकशरीरद्रव्यवर्गणायें अवगाहनाकी अपेक्षा असंख्यातगुणी हैं । इन उराल पुद्गलों से हुआ है, इसलिए ओदारिक है । अथवा उराल, ज्येष्ठ और प्रधान ये एकार्थवाची शब्द है । शंका- उदार शब्द से उराल शब्दकी निष्पत्ति होनेपर औदारिकशरीरकी महत्ता कैसे बनती है ? समाधान- क्योंकि यह निर्वृत्तिगमनका हेतु है और अठारह हजार शीलोंकी उत्पत्तिका निमित्त हैं, इसलिए इसकी महत्ता बन जाती है । उस उरालमें जो होता है वह औदारिक है । अथवा उराल ही औदारिक है ऐसा ग्रहण करना चाहिए । शंका- औदारिकशरीर अवगाहनाकी अपेक्षा ही शेष शरीरोंसे महान् है, प्रदेशा और विसोपचयों की अपेक्षासे नहीं यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान - औदारिकशरीरके नाना समयों में संचित हुए प्रदेश सबसे स्तोक हैं | उनसे वैक्रियिकशरोरके नाना समयोंमें संचित हुए प्रदेश असंख्यातगुणे है । जगश्रेणिके असख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । उनसे आहारकशरोरके हुए प्रदेश असंख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या ? जगश्रेणिके असंख्यातवें है । उनसे तैजसशरीर के नाना समयों में संचित हुए प्रदेश अनन्तगुणे हैं । अभव्यों से अनन्तगुणा और सिद्धों के अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है । गुणकार क्या है ? नाना समयों में संचित भागप्रमाण गुणकार गुणकार क्या है ? उनसे कार्मणशरोरके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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