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________________ ३१६ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६, २२५ को गुण ? पलिदोवमस्स असंखे०मागस्स संखे०भागो। तिसरीरा असंखेज्जगुणा ॥ २२५ ॥ को गुण ? आवलि० असंखे०भागो। सम्मत्ताणुवावेण सम्माइट्ठी वेवगसम्माइट्ठी सासणसम्माइट्ठीपंचिदियपज्जत्तभंगो ।। २२६ ॥ कुदो? सव्वत्थोवा चदुसरीरा । विसरीरा असंखे० गुणा । को गुण? आवलि. असंखे०भागो। तिसरीरा असंखे०गुणा । को गुण० ? आवलि० असंखे० भागो त्ति पदसंखाए असंखेज्जगुणतणेण च भेदाभावादो। खइयसम्माइट्ठी उवसमसम्माइट्ठी सम्वत्थोवा विसरीरा ।२२७' कुदो ? संखेज्जत्तादो। चदुसरीरा असंखेज्जगुणा ॥ २२८ ॥ को गुण० ? पलिदो० असंखे० भागो। गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । उनसे तीन शरीरवाले जीव असंख्यातगणे हैं ।। २२५ ॥ गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। सम्यक्त्व मार्गणाके अनुवादसे सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंके समान भंग है ।। २२६ ॥ क्योंकि, चार शरीरवाले सबसे स्तोक हैं। उनसे दो शरीरवाले असंख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । उनसे तीन शरीरवाले असंख्यातगुण हैं । गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है इस प्रकार पदसंख्या और असंख्यातगुणत्वकी अपेक्षा कोई भेद नहीं है। क्षायिकसम्यग्दष्टि और उपशमसम्यग्दष्टि जीबोंमें दो शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं ॥ २२७ ।। क्योंकि, इनका प्रमाण संख्यात है। उनसे चार शरीरवाले जीव असंख्यातगणे हैं ॥ २२८॥ गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। अ.का. प्रत्योः 'पदसंखा असखेज्जगणतणेण ' इति पाठ।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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