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________________ छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ३१२) कुदो ? एगपदत्तादो। जाणाणुवादेण मदिअण्णाणि-सुवअण्णाणी ओघं ॥२०९॥ कुदो ? सम्वत्थोवा चदुसरीरा । विसरीरा अणंतगुणा । तिसरीरा असंखे०गुणा इच्चेदेहि विसेसाभावादो। विहंगणाणी सव्वत्थोवा* चदुसरीरा ॥२१०॥ कुदो? पलिदो० असंखे० मागेण गुणिदघणंगुलमेत्तजगसेडिपमाणतिरिक्खविभंग णाणीणमसंखे० भागत्तादो। तिसरीरा असंखेज्जगुणा ॥२११॥ को गुणगारो ? सेडीए असंखे०भागो। आभिणि-सुद-ओहिणाणीसु पंचिदियपज्जत्ताणं भंगो॥२१२॥ कुदो ? सव्वत्थोवा चदुसरीरा । विसरीरा असंखेज्जगणा । को गुण ? आवलियाए असंखे०भागो। तिसरीरा असंखेमणा । को गण ? आवलि० असंखे. क्योंकि, इनमें एक ही पद है।। ज्ञानमार्गणाके अनुवादसे मत्यज्ञानी और श्रुतज्ञानी जीवोंमें ओघके समान भड्.ग है ।। २०९॥ क्योंकि, चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे दो शरीरवाले जीव अनन्तगुण हैं और उनसे तीन शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं इस अल्पबहुत्वकी अपेक्षा ओघसे इनम कोई भेद नहीं है। विभड्.गज्ञानी जीवोंमें चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं ।। २१० ।। क्योंकि, पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण घनाङ्गुलोंसे जगश्रेणिके गुणित करने पर जो लब्ध आवे तत्प्रमाण चार शरीरवाले जीव हैं। उनसे तीन शरीरवाले असंख्यातगुणे हैं ।। २११ ॥ गुणकार क्या है ? जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। आमिनिबोधिकज्ञानी श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकोंके समान भड्.ग है ।। २१२ ॥ क्योंकि, चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे दो शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। उनसे तीन शरीरवाले xता० प्रती ' -सुदअण्णाणीसु ओघ-' इति पाठः । * ता० प्रती 'विहंगणाणीसु सव्वत्थोवा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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