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________________ ५, ६, २०८ ) · बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए अप्पाबहुअपरूवणा ( ३११ कम्मइयकायजोगीसु सम्वत्थोवा तिसरीरा ॥ २०४ ॥ कुदो ? पदर-लोगपूरणगदसजोगीणं संखेज्जाणं चेव उवलंभादो। विसरीरा अणंतगुणा ॥ २०५ ।। को गण? अणंताणि सव्वजीवरासिपढमवग्गमलाणि । वेदाणुवादेण इथिवेद-पुरिसवेदा पंचिदियभंगो ॥ २०६ ॥ व. कुदो ? सव्वत्थोवा चदुसरीरा । विसरीरा असंखेज्जगुणा । तिसरीरा असंखेज्जगणा इच्चेदेहि भेदाभावादो।। णवंसयवेदा कसायाणुवादेण कोधकसाई माणकसाई मायकसाई लोभकसाई ओघं ॥ २०७ ।। कुदो ? सव्वत्थोवा चदुसरीरा। विसरीरा अणंतगुणा । तिसरीरा- असंखेज्जगुणा इच्चेदेहि भेदाभावादो । __ अवगदवेद-अकसाईणं णवि अप्पाबहुगं ।। २०८ ।। कार्मणकाययोगी जीवोंमें तीन शरीरवाले सबसे स्तोक हैं । २०४ । ... क्योंकि, प्रतर और लोकपूरण अवस्थाको प्राप्त हुए सयोगिकेबली संख्यात ही उपलब्ध होते हैं। उनसे दो शरीरवाले अनन्तगुणे हैं । २०५ । गुणकार क्या है ? सब जीवराशिके अनन्त प्रथम वर्गमूलप्रमाण गुणकार है। वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदवाले और पुरुषवेदबाले जीवोंमें पंचेन्द्रियोंके समान भंग है । २०६ । क्योंकि, चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे दो शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं और उनसे तीन शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं इस अल्पबहुत्वकी अपेक्षा इनमें कोई भेद नहीं है। नपंसकदवाले जीवों तथा कषाय मार्गणाके अमवादसे क्रोधकषायवाले, मानकषायवाले, मायाकषायवाले और लोभकषायवाले जीवों में . ओघके समान भंग है । २०७। क्योंकि, चार शरीरवाले सबसे स्तोक हैं। उनसे दो शरीरवाले जीव अनन्तगणे हैं और उनसे तीन शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं इस अल्पबहुत्वकी अपेक्षा ओघसे इनमें कोई भेद नहीं है। अपगतवेदी और अकषायी जीवोंमें अल्पबहुत्व नहीं है । २०८ । ४ अ० प्रती ' चदुसरीरा अणंतगुणा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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