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________________ ५, ६, १९८ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए अप्पाबहुअपरूवणा ( ३०९ सम्वत्थोवा विसरीरा ॥ १९५॥ सगसगरासिम्हि संखेज्जावलियमेत्तमज्झिमट्टिदीए भागे हिदे सगसविसरीरपमाणप्पत्तीदो। तसकाइयअपज्जत्तएसु आवलियाए असंखे० भागेण सगरासिम्हि ओवट्रिदे विसरीराणमप्पत्तिदसणादो। तिसरीरा असंखेज्जगुणा ॥ १९६ ॥ को गण? आवलि० असंखे० भागो । तसअपज्जत्तएसु अण्णत्थ संखेज्जावलियाओ। तेउकाइय-वाउकाइय-बादरतेउकाइय-बावरवाउकाइयपज्जत्ता तसकाइया तसकाइयपज्जत्ता पंचवियपज्जत्तभंगो ॥ १९७॥ कुदो ? सव्वत्थोवा चदुसरीरा। विसरीरा असंखेज्जगुणा । तिसरीरा असंखे०गणा इच्चेदेहि तत्तो भेदाभावादो । गणगारेण दव्वपमाणेण च भेदो अस्थि सो एत्थ ण विवक्खिदो । सो च भेदो जाणिय परूवेयवो । ____ जोगाणुवादेण पंचमणजोगि--पंचवचिजोगीसु सम्वत्थोवा चदुसरीरा ॥ १९८ ॥ और अपर्याप्त तथा प्रसकायिक अपर्याप्त जीवोंमें दो शरीरवाले सबसे स्तोक हैं ।। १९५ ॥ क्योंकि, अपनी अपनी राशिमें संख्यात आवलिप्रमाण मध्यम स्थितिका भाग देने पर अपने अपने दो शरीरवालोंका प्रमाण उत्पन्न होता है। त्रसकायिक अपर्याप्तकोंमें आवलिके असंख्यातवें भागसे अपनी राशिके भाजित करने पर दो शरीरवालोंकी उत्पत्ति देखी जाती है। उनसे तीन शरीरवाले जीव असंख्यातगणे हैं ॥ १९६ ॥ गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। अन्यत्र त्रसअपर्याप्तकों में संख्यात आवलियां गुणकार है। अग्निकायिक, वायुकायिक, बादर अग्निकायिक, बादर अग्निकायिकपर्याप्त, बादर वायकायिक और बादर वायकायिकपर्याप्त, त्रसकायिक और त्रसकायिकपर्याप्त जीवोंमें पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकोंके समान भङग हैं ।।१९७॥ क्योंकि, चार शरीरवाले सबसे स्तोक हैं। उनसे दो शरीरबाले असंख्यातगुणे हैं और उनसे तीन शरीरवाले असंख्यातगुणे हैं इस अल्पबहुत्वकी अपेक्षा उनसे इनमें कोई भेद नहीं है। गुणकार और द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा यद्यपि भेद है परन्तु उनकी यहां विवक्षा नही है। तथा उस भेदको जानकर कहना चाहिए । योगमार्गणाके अनुवादसे पाँचों मनोयोगी और पाँचों वचनयोगी जीवोंमें चार शरीरवाले सबसे स्तोक हैं ॥१९८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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