SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 336
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५, ६, १७८ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए अप्पाबहुअपरूवणा एवं जाव सत्तसु पुढवीसु ।। १७५ ।। सत्तसु* पुढवीसु पत्तेयं पत्तेयं अध्याबहुअपरूवणे कीरमाणे जहा णिरओघम्हि वृत्तं तावत्तव्यं । तिरिक्खगदीए तिरिक्खे ओघं ॥ १७६ ॥ जहा मूलोघम्हि अप्पा बहुअपरूवणा कदा तहा तिरिक्खेसु कायव्वा । णवरि असरोरा णत्थि । तं जहा - सव्वत्थोवा चदुसरीरा । बिसरीरा अनंतगुणा । को गुणगारो ? विसरोराणमसंखे० भागो को पडि० ? चदुसरी ररासी । तिसरीरा असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? संखेज्जावलियाओ 1 पंचिदियतिरिक्खं - पंचिवियतिरिक्खपज्जत्त-पंचिदियतिरिक्खजोणिणीसु सम्वत्थोवा चदुसरीरा ॥ १७७ ॥ कुदो ? पलिदो० असंखे ० भागमेत्तघणंगुलेहि गुणिदजगसेडियमाणत्तादो । बिसरीरा असंखेज्जगुणा ॥ १७८ ॥ को गुणगारो ? सेडिए असंखे० भागो । तस्स को पडिभागो ? चदुसरीर विषखंभ ( ३०३ इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें जानना चाहिए ।। १७५ ।। अलग अलग प्रत्येक पृथिवी में अल्पबहुत्वका कथन करने पर जिस प्रकार सामान्य नारकियों में कहा है उस प्रकार कहना चाहिए । तियंचगतिको अपेक्षा तियंचोंमें ओघके समान भंग है ॥ १७६ ॥ 4 1 जिस प्रकार मूलोध में अल्पबहुत्वप्ररूपणा की है उस प्रकार तिर्यञ्चों में करनी चाहिए इतनी विशेषता है कि यहाँ अशरीरी जीव नहीं है । यथा- चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे दो शरीरवाले जीव अनन्तगुणे हैं । गुणकार क्या है ? दो शरीरवालोंके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । प्रतिभाग क्या है ? चार शरीरवालोंकी राशि प्रतिभाग है। उनसे तीन शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है ? संख्यात आवलियाँ गुणकार 1 पंचेंद्रिय तिर्यंच, पंचेंद्रिय तिर्यंच पर्याप्त और पंचेंद्रिय तिर्यंच योनिनियों में चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं ॥ १७७ ।। क्योंकि, पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण घनांगुलोंसे जगश्रेणिके गुणित करने पर जो लब्ध आवे उतना यहाँ चार शरीरवालोंका प्रमाण है । उनसे दो शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं ।। १७८ ॥ गुणकार क्या है ? जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । उसका प्रतिभाग ता० प्रती सूत्रानतरं 'सत्तसु पुढवीसु' इति पाठो नास्ति । अ० प्रती पंचिदियतिरिक्ख Jain Education International इति पाठो नास्ति 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy