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________________ ३०० ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६. १६७ जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण मासपुधत्तं । एगजीवं प० जहण्णेण वासपुधत्तं उक्कस्सेण छावद्धिसागरोवमाणि देसूणाणि । तिसरीराणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? जाणाजी० प० पत्थि अंतरं णिरंतरं। एगजीवं प० जहण्णण एगसमओ, उकस्सेण अंतोमहुतं । चदुसरीराणमंतरं केवचिरं का० होदि ? णाणाजी०प० स्थि अंतरं णिरंतरं। एगजीवं प० जह० अंतोमहतं, उक्क० छावट्रिसगारोवमाणि देसूणाणि। उवसमसम्माइट्ठी बिसरीराणमंतरं केचिरं का. होवि? जाणाजी०प० जह० एगसमओ उक्क० वासपुधत्तं । एगजीवं प० स्थि अंतरं । तिसरीराणमंतरं केवचिर का० होदि ? जाणाजी० ५० जहण्णेण एगसमओ उक्कस्सेण सत्तरादिवियाणि । एगजीवं प० जह० एगसमओ उक्क० अंतोमहत्तं । चदुसरीराणमंतरं केवचिरं का० होति? गाणाजी० ५० जह० एगसमओ, उक्क० सत्तराविदियाणि । एगजीवं ५० णस्थि अंतरं । सासणसम्माइट्ठी० बिसरीर-तिसरीर-चदुसरीराणमंतरं केवचिरं कालादो होवि ? जाणाजी० प० जहण्णण एगसमओ उक्कस्सेण पलिदो० असंखेज्जविभागो । एगजीव प० पत्थि अंतरं । सम्मामिच्छाइट्ठी० तिसरीर-चदुसरीराणमंतरं केवचिरं कालादो होदि? गाणाजी० प० जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण पलिदो० असंखेजविभागो। एगजीवं प० पत्थि अंतरं । मिच्छाइट्ठी० ओघं । कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर मासपृथक्त्वप्रमाण है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है और उत्कृष्ट अंतर कुछ कम छयासठ सागर है। तीन शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंको अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है, निरन्तर है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । चार शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है. निरन्तर है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहुर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छयासठ सागर है ! उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें दो शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अंतर एक समय है और उत्कृष्ट अंतर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। तीन शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अंतर सात रातदिन है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अंतर चार शरीरवालोंका अंतरकाल कितना है? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सात रातदिन है। एक जीवको अपेक्षा अंतरकाल नहीं है। सासादनसम्यग्दष्टियोंमें दो शरीरवाले, तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंका अन्तरकाल कितना है? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्त र एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। सम्यग्मिथ्यादृष्टियों में तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। मिथ्यादृष्टियोंका भंग ओघके समान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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