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________________ ५, ६, १६७ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए अंतरपरूवणा (२९९ होदि ? जाणाजी० प० उभयदो पत्थि अंतरं। पम्मलेस्सिएसु बिसरीराणमंतरं केवचिरं का० होदि ? णाणाजी० ५० जह० एगसमओ, उक्क० पक्खो। एगजीवं प० जह० बेसागरो० साविरेयाणि, उक्क० अट्टारससागरो० सादिरेयाणि । तिसरीराणमंतरं केवचिरं का. होदि ? णाणाजी० ५० पत्थि अंतरं। एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमहत्तं । चदुसरीराणमंतरं गाणेगजी० ५० उभयदो णत्थि । सुक्कलेस्सिएसु बिसरीराणमंतरं केवचिरं का. होदि ? जाणाजी० प० जह० एगसमओ, उक्क० चत्तारि मासा। एगजीवं प० जह० अट्ठारससागरोवमाणि साविरेयाणि, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि समऊगाणि । तिसरीर-चदुसरीराणं तेउलेस्सियभंगो । भवियाणुवादेण भवसिद्धिया अभवसिद्धिया ओघं। सम्मत्ताणवादेण सम्माइट्ठीणमोहिणाणी० भंगो। खइयसम्माइट्ठी० विसरीराणमंतरं केवचिरं का० होदि ? जाणाजी० ५० जह० एगसमओ, उक्क० वासपुधत्तं । एगजीनं प० जह० चदुरासीदिवस्ससहस्साणि बिसमऊणाणि, उक्क० तेत्तीसं सागरो० समऊणाणि । तिसरीरा ओघं। चदुसरीराणमंतरं, केवचिरं का० होदि ? जाणाजी० १० णस्थि अंतरं। एगजीन प० जह० अन्तोमहत्तं, उक्क० तेत्तीस सागरोवमाणि सादिरेयाणि। वेदगसम्माइट्ठी० बिसरीराणमंतरं केवचिरं का. होदि? जाणाजी० ५० है ? नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा उभयतः अंतरकाल नहीं है। पद्मलेश्यावाले जीवों में दो शरीरवालोंका अंतरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अंतर एक समय है और र एक पक्ष है। एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर साधिक दो सागर है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक अठारह सागर है । तीन शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहुर्त है। चार शरीरवालोंका अन्तरकाल नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा उभयत: नहीं है। शुक्ललेश्यावालोंमें दो शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चार महीना है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर साधिक अठारह सागर है और उत्कृष्ट अन्तर एक समय कम तेतीस सागर है। तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंका भंग पीतलेश्यावाले जीवोंके समान है। भव्यमार्गणाके अनुवादसे भव्योंमें और अभव्यों में ओघके समान भंग है। ___ सम्यक्त्व मार्गणाके अनुवादसे सम्यग्दृष्टियोंका भंग अवधिज्ञानियोंके समान है। क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में दो शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर दो समय कम चौरासी हजार वर्षप्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर एक समय कम तेतीस सागर है । तीन शरीरवालोंका भंग ओघके समान है। चार शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अंतरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अंतर अंतर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है । वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें दो शरीरवालोंका अंतरकाल अ० का० प्रत्योः 'ओघं तिसरीराणमतरं ' इति पाठ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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