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________________ ५, ६, १६७ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए अंतरपरूवणा ( २९७ विभंगणाणी० तिसरीर-चदुसरीराणं गाणेगजीवे प० णत्थि अंतरं। आभिणि-सुद ओहिणाणी विसरीराणमंतरं केवचिरं का. होदि? जाणाजी० प० जह० एगसमओ, उक्क०मासपुधत्तं। ओहिणाणीसु वासपुधत्तं । एगजीवं प० जह० वासपुधत्तं, उक्क० छावद्धिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । तिसरीरा ओघं। चदुसरीराणमंतरं केवचिरं का० होदि? जाणाजी० प० णत्थि अंतरं । एगजीवं प० जह० अंतोमहत्तं उक्क० छावटिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । मणपज्जवणाणी० तिसरीराणमंतरं केवचिरं का० होदि? जाणाजी० ५० जत्थि अंतरं। एगजीवं प० जहण्गक्क० अंतोमहत्तं । चदुसरीराणमंतरं केवचिरं का० होवि? जाणाजी० प० पत्थि अंतरं । एगजीवं प० जह० अंतो. मुहुत्तं, उक्क० पुवकोडी देसूणा । केवलणाणीणमवगदवेदभंगो। संजमाणवावेण संजदेसु तिसरीर-चदुसरीराणं मणपज्जवभंगो। सामाइयच्छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजद० तिसरीर-चदुसरीराणं पि एवं चेव वत्तन्वं । परिहारसुद्धिसंजदेसु तिसरीराणमंतरं केवचिरं का. होवि ? जाणेगजी० ५० उमयदो वि पत्थि अंतरं। सुहमसांपराइयसुद्धिसंजदेसु तिसरीराणमंतरं केवचिरं का. होवि? गाणाजी०* शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंका भंग ओघके समान है ? विभंगज्ञानी जीवोंमें तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंका नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है ! आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें दो शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर प्रारम्भके दो ज्ञानोंमें मासपृथक्त्व तथा अवधिज्ञानमें वर्षपथक्त्वप्रमाण है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर सादिक छयासठ सागर है । तीन शरीरवालोंका भंग ओघके समान है। चार शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अंतर साधिक छयासठ सागर है। मनःपर्ययज्ञानी जीवोंमें तीन शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्महुर्त है। चार शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहुर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है। केवलज्ञानियोंका भंग अपगतवेदी जीवोंके समान है। संयममार्गणाके अनुवादसे संयतोंमें तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंका भंग मनःपर्ययज्ञानियोंके समान है। सामायिकशुद्धिसंयत और छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत जीवोंमें तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंका भंग इसी प्रकार कहना चाहिए। परिहारविशुद्धिसंयतोंमें तीन शरीरवाले जीवोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा उभयतः अन्तरकाल नहीं है। सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयतों में तीन शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर *ता० प्रती 'होदि ? णाणाजीवं' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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