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________________ २९६) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं वेदाणवादेण इत्थिवेवेसु बिसरीराणमंतरं केवचिरं का. होदि? जाणाजी० ५० जह० एगसमओ, उक्क० चदुवीसमहुत्ता। एगजीवं प० जह० अंतोमहत्तं बिसमऊणं उक्क० पलिदोवमसदपुधत्तं । तिसरीराणमंतरं केवचिरं का. होदि? जाणाजी० प० पत्थि अंतरं । एगजीवं १० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमहत्तं । चदुसरीराणमंतरं केवचिरं कालादो होवि? णाणाजी० प० गत्थि अंतरं । एगजीवं प० जह० अंतोमहत्तं, उक्क० पलिदोवमसदपुधत्तं । एवं पुरिसवेवस्त । गरि जत्थ पलिदोवमसदपुधत्तं तत्थ सागरोधमसदपुधत्तं वत्तव्वं । गवंसयवेदेसु निसरीरा तिसरीरा चदुसरीरा ओघं । अवगदवेद० तिसरीराणं णाणेगजीवे प० उभयदो पत्थि अंतरं। कसायाणवादेण कोध-माण-माया-लोभकसाई० बिसरीर-चदुसरीराणमंतरं जाणेगजी० प० उभयदो पत्थि अंतरं । तिसरीराणमंतरं केवचिरं का. होदि ? णाणाजी० ५० पत्थि अंतरं। एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमहुतं । अकसाईणमवगववेदभंगो। गाणाणुवादेण मदि-सुदअण्णाणि बिसरीरा तिसरीरा चदुसरीरा ओघं । काययोगियोंमें तीन शरीरवालोंका नाना जीवोंको अपेक्षा अन्तरकाल केवलिसमुद्घातको अपेक्षा से बतलाया है । तात्पर्य यह है कि केवली जीव एक समयके अन्तरसे भी केवलिसमुद्घात कर सकते हैं और अधिकसे अधिक काल तक यदि कोई जीव केवलिस मुद्घातको न प्राप्त हो तो वर्ष पृथक्त्व काल तक नहीं प्राप्त होता । शेष कथन स्पष्ट ही है। - वेदमार्गणाके अनुवाद से स्त्रीवेदवालोंमें दो शरीरवालोंका अंतरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अतर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चौबीस मुहूर्त है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर दो समय कम अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर सो पल्य पृथक्त्वप्रमाण है। तीन शरीरवालोंका अंतरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अंतरकाल नहीं है। एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहुर्त है। चार शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर सो पल्य पृथक्त्वप्रमाण है। इसी प्रकार पुरुषवेदी जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जहां सो पल्य पृथक्त्वप्रमाण अन्तर कहा है वहां सौ सागर पृथक्त्वप्रमाण अन्तर कहना जाहिए । नपुंसकवेदी जीवोंमें दो शरीरवाले, तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंका भंग ओघके समान है। अपगतवेदी जीवोंमें तीन शरीरवालोंका नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा उभयतः अन्तरकाल नहीं है। कषायमार्गणाके अनुवादसे क्रोधकषायवाले, मानकषायवाले, मायाकषावाले और लोभकषायवाले जीवोंमें दो शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंका नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा उभयतः अन्तरकाल नहीं है। तीन शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। एक जीवको अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहर्त है । अकषायी जीवोंमें अपगतवेदी जीवोंके समान भंग है। ___ ज्ञानमार्गणाके अनुवादसे मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें दो शरीरवाले, तीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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