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________________ ५, ६, १६७ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए अंतरपरूवणा ( २९१ दोण्णं पि तिसरीराणं अंतरं केवचिरं का. होदि ? णाणाजी० प० णस्थि अंतर णिरंतरं। एगजीनं ५० जह० एगसमओ, उक्क० तिणि समया। बेइंदिय-तेइंदियचाउरिदिएसु तेसि पज्जत्तेसु च बिसरीराणमंतरं केवचिरं का. होदि? जाणाजी०प० जह सव्वेसिमेगसमओ, उक्क० आदिमतियम्हि अंतोमहत्तं तिण्हं पज्जत्ताणं चदुवीस. महत्ता । एगजीनं प० जह. खुद्दाभवग्गहणं बिसमऊणं अंतोमहत्तं बिसमऊणं, उक्क० संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । तिसरीराणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजी० प० गस्थि अंतरं। एगजीनं प० जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया । बेइंदिय-तेहंदिय. चरिदियअपज्जत्त० बिसरीर-तिसरीराणं पंचिदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो। पंचिदियपंचिदियपज्जत्त० बिसरीराणमंतरं केवचिरं कालादो होवि ? णाणाजीवं पडुच्च जह० एगसमओ, उक्क० अन्तोमहत्तं चदुवीसमहुत्ता। एगजीनं प० जह० खुद्दाभवग्गहणं बिसमऊणं अन्तोमहत्तं बिसमऊणं उक्क०* सागरोवमसहस्स पुदकोडिपुधतेणमहियसागरोवमसव'धत्तं । तिसरीरा ओघ । चदुसरीराणमंतर केवचिर का० होदि? जाणाजीवं प० णस्थि अंतरं । एगजीनं प० जह० अन्तोमहत्तं उक्क० सागरोवमसहस्सं पुवकोडिपुधत्तेणब्भहियं सागरोवमसदपुधत्तं । पंचिदियअपज्जत्ताणं ही जीवोंमें तीन शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है, नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है, निरन्तर है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट तीन समय है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और इन तीनोंके पर्याप्त जीवोंमें दो शरीरवालोंका अंतरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर सभीका एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर प्रारभ्भके तीनोंमें अन्तर्मुहूर्त तथा तीनों पर्याप्तकोंमें चौबीस मुहूर्त है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर प्रारम्भके तीनोंमें दो समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण और अन्तके तीनोंमें दो समय कम अन्तर्मत है तथा उत्कृष्ट अन्तर संख्यात हजार वर्षप्रमाण है। तीन शरोरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। द्वीन्द्रिय अपर्याप्त, त्रीन्द्रिय अपर्याप्त और चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंमें दो शरीरवालों और तीन शरीरवालोंका भंग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके समान है। पञ्चेन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंमें दो शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्त र एक समय है और उत्कृष्ट अंतर पञ्चेन्द्रियों में अन्तर्मुहुर्त और पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकों में चौबीस महूर्त है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर पञ्चेन्द्रियोंमें दो समय कम क्षुल्लकभवग्रहणप्रमाण और पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें दो समय कम अन्तर्मुहर्त । तथा उत्कृष्ट अन्तर पञ्चेन्द्रियोंमें पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक हजार सागर और पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें सो सागर पृथक्त्वप्रमाण है। तीन शरीरवालोंका भग ओघके समान है। चार शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अंतरकाल नहीं है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहुर्त है । और उत्कृष्ट अन्तरकाल पञ्चेन्द्रियोंमें पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक हजार सागर और पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें सौ सागर पृथक्त्वप्रमाण *ता. प्रतो 'खुद्दा मवग्गहणं विसमऊण उक्क. ' इति पाठ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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