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________________ २८८ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६, १६७ बिसरीराणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजी० प० जहण्ण० एगसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागो। एगजीवं प० जहण्णण खहामवग्गहणं बिसमऊणं, उक्कस्सेण सत्त अंतोमहत्ताणि । तिसरीराणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? जाणाजी० प० जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एगजीवं प० जहण्णण एगसमओ उक्कस्सेण बेसमया । देवगदीए देवेसु बिसरीराणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? जाणाजी० ५० जहण्णण एगममओ, उक्कस्सेण चदुवीसं महत्तं। एगजीवं प० जत्थि अंतरं । तिसरीराणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? गाणेगजीवे प० णत्थि अंतरं । भवणवासियप्पहुडि जाव सम्वसिद्धिविमाणवासियदेवा ति बिसरीराणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? जाणाजीव ५० जहण्णेण सम्वेसिमेगसमओ, उक्कस्सेण भवणवासियवाणवेंतर-जोइसिय--सोहम्मीसाणदेवाणं अडदालीस महत्ता सणक्कुमार--माहिदे पक्खो बम्ह-बम्हुत्तर- लांतव- काविट्ठवेवेसु मासो सुक्कमहासुक्क-सवर-- सहस्सारकप्पवासियदेवेसु वे मासा आणद--पाणवदेवेसु चत्तारि मासा पृथक्त्व अधिक तीन पल्य है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें दो शरीरवालोंका अंतरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अतर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर दो समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर सात अन्तर्महुर्त है। तीन शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। विशेषार्थ -- पहले अपर्याप्त पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंमें एक जीवकी अपेक्षा दो शरीरवालोंका उत्कृष्ट अन्तर पन्द्रह अन्तर्मुहुर्त कह आये हैं और यहाँ सात अन्तर्मुहुर्त प्रमाण ही कहा है । सो इसका कारण यह है कि तियंञ्च संज्ञी और असंज्ञी दो प्रकारके होते हैं, इसलिए वहाँ संज्ञीके आठ असज्ञीके आठ इस प्रकार सोलह भवोंको ग्रहण कर उत्कृष्ट अन्तर प्राप्त किया गया है। पर मनुष्योंमें संज्ञी ही होते हैं, इसलिए संज्ञियोंके आठ भवोंका ग्रहण कर उत्कृष्ट अन्तर लाया गया है। यहाँ दोनों स्थलों पर भवग्रहणके प्रारम्भ में और अन्तिम भवके ग्रहण करने के प्रारम्भमें दो शरीरवाला उत्पन्न कराकर यह अन्तरकाल लाना चाहिए। देवतिकी अपेक्षा देवोंमें दो शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चौबास महूर्त है। एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। तीन शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीव और एक जीवको अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। भवनवासियोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धिविमानवासी तकके देवोंमें दो शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर सबका एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर भवनवासी, व्यन्त र, ज्योतिषी और सौधर्म-ऐशानकल्पके देवोंमें अडतालीस मुहूर्त, सनत्कुमार-माहेन्द्र में एक पक्ष, ब्रह्म ब्रह्मोत्तर, लान्तव और कापिष्ठमें एक माह, शुक्र, महाशुक्र, शतार और सहस्रार कल्पवासी देवोंमें दो माह, आनत और प्राणतके देवोंमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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