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________________ २८२) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६, १६७ सत्तसागरो० सादिरे । अदिरेगस्स पमाणं वे अंतोमहत्ताणि । तेउ-पम्मलेस्सिएसु बिसरीराणं णारगभंगो। तिसरीरा केवचिरं का० होंति? णाणाजीवं प० सम्वद्धा। एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० बेसागरोवमाणि सादिरेयाणि, अट्ठारससागरो० सादिरे. याणि । चदुसरोरा ओघ । सुक्कलेस्सिएसु बिसरीरा केवचिरं का० होति.?णाणाजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० संखेज्जा समया। एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया। तिसरीरा केवचिरं का० होंति? जाणाजीवं प० सव्वद्धा । एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि । चदुसरीरा ओघ । भवियाणुवादेण भवसिद्धिय-अभवसिद्धियाणमोघो। सम्मत्ताणवादेण सम्माइट्ठी० बिसरीर-तिसरीर-चदुसरीराणमाभिणि मंगो। खइयसम्माइट्ठो० बिसरीर तिसरीरचदुसरीराणं सुक्कलेस्सियभंगो। वेदगसम्माइट्ठी० बिसरीर-चदुसराराणं सम्माइटिभगो। तिसरीरा केवचिरं का. होंति? जाणाजीवं प० सम्वद्धा। एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क छावद्धिसागरोवमाणि । उवसमसम्माइट्ठी० विसरीराणं सुक्कलेस्सियभंगो । तिसरीरा चदुसरीरा केवचिर का होंति ? णाणाजीव प० जह० अंतोमहत्तं, उक्क० पलिदो० असखे भागो। एगजोवं ५० जहणेण एगसमओ उक्कस्सेण अतोमहत्त। है। पीतलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले जीवों में दो शरीरवाले जीवोंके कालका भंग नारकियोंके समान है। तीन शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पीतलेश्या में साधिक दो सागर तथा पद्मलेश्यामें साधिक अठारह सागर है। चार शरीरवालोंके कालका भंग ओघके समान है । शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें दो शरीरवालोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। तीन शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। चार शरीरवालोंका काल ओघके समान है। भव्यमार्गणाके अनवादसे भव्यों और अभव्योंका भंग ओघके समान है। सम्यक्त्व मार्गणाके अनुवादसे सम्यग्दृष्टियोंमें दो शरीरवाले, तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंके कालका भंग आभिनिबोधिकज्ञानी जीवोंके समान है । क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें दो शरोरवाले, तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंके काल का भंग शुक्ललेश्यावाले जीवोंके समान है। वेदकसम्यगन्दष्टियोंम दो शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंके काल का भंग सम्यग्दाष्ट जीवों के समान है। तीन शरीवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सवदा काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल छयासठ सागर है उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें दो शरीरवाले जीवोंके काल का भंग शुक्ललेश्यावाले जीवोंके समान है। तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जोवोंकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । एक जीवकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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