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________________ ५, ६, १६७ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए कालपरूवणा (२८१ छेदोवट्टावणसंजदेसु तिसरीर-चदुसरीराणं मणपज्जवमंगो। परिहारसंजदेसु तिसरीरा केवचिरं कालादो होंति? गागाजीवं प० सम्वद्धा। एगजीवं ५० जहण्णेण अंतोमहतं. उक्कस्सेण पुचकोडी देसूणा। सुहमसांपराइय० तिसरीरा केवचिरं कालावो होंति ? णाणाजीवं प० जहण्णण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । एगजीवं प० जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमहत्तं। जहाक्खाद० अवगदवेदभंगो । संजवासजदा तिसरीरा केचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं प० सम्वद्धा । एगजीवं प० जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण पुवकोडी देसूणा । सा वि तिरिक्खेसु तिहि अंतोमहुत्तेहि ऊणा कादूण घेत्तव्वा । चदुसरीरा ओघं । असंजदाणं मदिअण्णाणिभंगो। दसणाणुवादेण चक्खदंसणीणं तसपज्जत्तभंगो। अचक्खुदंसणी० ओघं । ओहिदसणीणमोहिणाणी० भंगो । केवलदंसणीणं केवलणाणी मंगो। लेस्साणुवादेण किण्ह-गील काउलेस्सिएसु बिसरीरा चदुसरीरा ओघं । तिसरीरा केवचिरं कालादो होति? जाणाजीव प० सव्वद्धा। एगजीवं प० जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि, सत्तसागरो० सादिरे. पस्थापनासंयत जीवोंमें तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंके कालका भंग मनःपर्ययज्ञानी जीवोंके समान है। परिहारविशुद्धिसंयतोंमें तीन शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नानाजीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है। सूक्ष्मसांपरायसंयतोंमें तीन शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहुर्त है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। यथाख्यातसंयतोंमें अपगतवेदवाले जीवोंके समान भंग है। संयतासंयतोंमें तीन शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटि है । वह भी तिर्यञ्चोंमें तीन अन्तमुहूर्त कम करके ग्रहण करना चाहिए। चार शरीरवालोंका भंग ओघके समान है। असंयतोंमें मत्यज्ञानी जीवोंके समान भंग है। दर्शनमार्गणाके अनुवादसे चक्षदर्शनवाले जीवोंका भंग असपर्याप्त जीवोंके समान है। अचक्षुदर्शनवाले जीवों में ओघके समान भंग है। अवधिदर्शनवाले जीवोंका भंग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। तथा केवलदर्शनवाले जीवोंमें केवलज्ञानी जीवोंके समान भंग है। लेश्यामार्गणाके अनुवादसे कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले और कापोतलेश्यावाले जीवोंमें दो शरीरवाले और चार शरीरवाले जीवोंके कालका भंग ओघके समान है। तीन शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नामा जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कृष्णलेश्यामें साधिक तेतीस सागर, नील लेश्यामें साधिक सत्रह सागर तथा कापोत लेश्यामें साधिक सात सागर है । यहाँ साधिकका प्रमाण दो अंतर्मुहूर्त *म० प्रतिपाठोऽयम् | ता० प्रती ' केवलदसणीए (सु ) केवलणाणी. ' अ० का. प्रत्योः 'केवलदसणीए केवलणाणी०' इति पाठ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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