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________________ २६८ छक्खंडागमे वग्गणा - खंड ( ५, ६, १६७ होंति ? णाणाजीवं पडुच्च जह० एगसमओ, उक्क० आवलि० असंखे भागो । एगजीवं पडुच्च जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया । तिसरीरा केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजोवं पडुच्च जह० दसवाससहस्साणि विसमऊणाणि, उक्क० तेत्तीस सागरोवमाणि संपुष्णाणि । पढमपुढविप्पहुडि जाव सत्तमपुढविणेरइएसु बिसरीरा haचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च जह० एगसमओ, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । एगजीवं पडुच्च जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया । तिसरीरा केदचिरं कालादो होति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जह० दसवाससहस्साणि बिसमऊउक्क सागरोवमं संपुष्णं । जह० सागरोवमं समऊणं, उक्क० तिष्णि सागरोवमाणि संपुष्णाणि । जह० तिण्णि सागरोवमाणि समऊगाणि, उक्क० सत्त सागरोवमाणि संपु| जह० सत्तसागरोवमाणि समऊणाणि, उक्क० दस सागरोवमाणि संपुष्णाणि । जह० • दससागरोवमाणि समऊणाणि, उक्क० सत्तारस सागरोवमाणि संपुष्णाणि । जह० सत्तारस सागरोवमाणि सयऊणाणि, उक्क० बावीसं सागरो० संपुष्णाणि । जह० बावीसं सागरो० समऊणाणि, उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि संपुष्णाणि । ० कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । तीन शरीरवालों का कितना काल हैं ? नाना जीवों की अपेक्षा सर्वदा काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल दो समय कम दस हजार वर्ष प्रमाण हैं और उत्कृष्ट काल सम्पूर्ण तेतीस सागर है | पहिली पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियों में दो शरीरवालों का कितना काल हैं ? नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। एक जीवको अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । तीन शरीरवालोंका कितना काल हैं ? नाना जीवोंको अपेक्षा सर्वदा काल हैं । एक tant अपेक्षा प्रथम पृथिवीं में जघन्य काल दो समय कम दस हजार वर्ष है और उत्कृष्ट काल सम्पूर्ण एक सागर है । दूसरी पृथिवीमें जघन्य काल एक समय कम एक सागर है और उत्कृश्ट काल सम्पूर्ण तीन सागर है। तीसरी पृथिवी में जघन्य काल ऊक समय कम तीन सागर है और उत्कृश्ट काल सम्पूर्ण सात सागर है। चौथी पृथिवी में जघन्य काल एक समय कम सात सागर हैं और उत्कृश्ट काल सम्पूर्ण दस सागर है। पांचवी पृथिवीमें जघन्य काल एक समय कम दस सागर है और उत्कृष्ट काल सम्पूर्ण सत्रह सागर है। छठी पृथिवीमें जघन्य काल एक समय कम सत्रह सागर है ओर उत्कृष्ट काल सम्पूर्ण बाईस सागर हे । सातवीं पृथिव में जघन्य काल एक समय कम बाईस सागर हे और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है । विशेषार्थ - नरक में नाना जीव विग्रह गति से यदि निरन्तर उत्पन्न हो तो कमसे कम एक समय तक ओर अधिकसे अधिक आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक हो उत्पन्न होते हैं । सामान्यसे ओर प्रत्येक पृथिवीं में यही नियम है, इसलिए यहां सर्वत्र नाना जीवोंको अपेक्षा दो शरीरवालोंका जघन्य काल एक समय ओर उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें अ० प्रतो' उक्क० दससागरोवमाणि समऊणाणि । जह० इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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