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________________ ५, ६, १६७.) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए कालपरूवणा (२६७ केवलिभंगो। एवं फोसणाणगमो समत्तो। कालाणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य। ओघेण बिसरीरा केवचिरं कालादो होति? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तिण्ण समया। तिसरीरा केवचिरं कालादो होति? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जह० एगसमओ, उक्क० अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणिओ। चदुसरीरा केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं। आदेसेण गदियाणुवादेण णिरयगदीए रइएसु बिसरीरा केवचिरं कालादो दो शरीरवालोंका भंग कामणकाययोगो जीवोंके समान है। तीन शरीरवालोंका भंग केवलज्ञानियोंके समान है। इस प्रकार स्पर्शानुगम समाप्त हुआ। कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- ओघ और आदेश। ओघसे दो शरीरवालोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीन समय है । तीन शरीरवाले जीवोंका कितना काल है? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है जो असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणीके बराबर है। चार शरीरवाले जीवोंका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। विशेषार्थ - कार्मण काययोगका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल होनेसे यहां नाना जीवोंकी अपेक्षा दो शरीरवालोंका सर्वदा काल कहा है। इसी प्रकार तोन शरीरवाले और चार शरीरवाले जीव भी निरन्तर पाये जाते हैं, इसलिए नाना जीवको अपेक्षा इनका सर्वदा काल कहा हैं। तथा एक जीवकी अपेक्षा कार्मणकाययोगका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय होनेसे दो शरीरवालोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय कहा है। जो औदारिक शरीरके साथ विक्रिया कर रहा है वह एक समय के लिए तीन शरीरवाला होकर यदि द्वितीय समयमें मर कर दो शरीरवाला हो जाता है तो उसके तीन शरीरवालोंका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है । यह देखकर एक जोवकी अपेक्षा तीन शरीरवालोन्का जघन्य काल एक समय कहा है। तथा आहारक अवस्थाका उत्कृष्ट काल अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है, इसलिये एक जीवकी अपेक्षा तीन शरीरवालोंका उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण कहा है। किसी जीवने औदारिक शरीरसे विक्रिया प्रारंभ की और दूसरे समयमें मर कर वह दो शरीरवाला हो गया। यह देख कर एक जीवकी अपेक्षा चार शरीरवालों का जघन्य काल एक समय कहा है । तथा एक जोवके विक्रियाका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त है, इसलिए एक जीवको अपेक्षा चार शरीरवालोका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त कहा है। आगे गति आदि मार्गणाओंमें इसी प्रकार कालका विचार कर वह घटित कर लेना चाहिए। आदेशसे गति मागंणाके अनुवादसे नरकगतिकी अपेक्षा नारकियोमें दो शरीरवालोंका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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