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________________ ( २१ ) विषय ४४० ४३० विषय पृष्ठ जघन्यपदकी अपेक्षा आहारकशरीरकी जीवसे अलग होनेपर उनकी चार प्रकारकी पदमीमांसा ४२५ हानिका निर्देश अजघन्य पदकी अपेक्षा आहारकशरीरको द्रव्यहामिकी अपेक्षा औदारिक शरीरकी पदमीमांसा ४२६ एकप्रदेशी वर्गणाका विचार ४४१ जघन्य पदकी अपेक्षा तैजसशरीरकी द्विप्रदेशी आदि वर्गणाओंका विचार ४४२ पदमीमांसा ४२६ शेष चार शरीरोंकी अपेक्षा इसी प्रकार अजघन्य पदकी अपेक्षा तैजसशरीरकी जाननेकी सूचना ४४४ पदमीमांसा ४२८ । क्षेत्रहानिकी अपेक्षा औदारिक शरीरकी जघन्य पदकी अपेक्षा कार्मणशरीरकी एक प्रदेशी वर्गणाका विचार ४४४ पदमीमांसा ४२८ द्विप्रदेशी आदि वर्गणाओंका विचार ४४५ अजघन्य पदकी अपेक्षा कार्मणशरीरकी शेष चार शरीरोंकी अपेक्षा इसी प्रकार पदमीमांसा ४२९ जानने की सूचना अल्पबहुत्व ४२९ कालहाविकी अपेक्षा औदारिकशरीरके एकप्रदेशी वर्गणाद्रव्यका विचार ४४७ शरीरविनसोपचयप्ररूपणा द्विप्रदेशी आदि वर्गणाद्रव्यका विचार ४४८ शरीरविस्रसोपचय प्ररूपणाके छह अनु शेष चार शरीरोंकी अपेक्षा इसी प्रकार योगद्वार जानने की सूचना ४४९ विनसोपचयका स्वरूपनिर्देश ४३० भावहानिकी अपेक्षा औदारिकशरीरके एक औदारिकशरीरकी अपेक्षा एक प्रदेश में गुणयुक्त वर्गणा द्रव्यका विचार ४५० अविभागप्रतिच्छंदोंका प्रमाण निर्देश ४३१ | द्विगणयक्त आदि वर्गणा द्रव्यका विचार ४५० अविभागप्रतिच्छेदोंका स्वरूप निर्देश ४३१ द्विगुण शब्दका अर्थ ४५१ कितने अविभागप्रतिच्छेदोंकी एक वर्गणा चार शरीरोंकी अपेक्षा इसी प्रकार जानने की होती है इस बातका निर्देश ४३२ सूचना कुल वर्गणाओंका प्रमाण निर्देश पाँच शरीरोंके आश्रयसे विस्रसोपचय कितनी वर्गणाओंका एक स्पर्धक होता है अल्पबहुत्वका कथन ४५३ इस बातका विचार जीवप्रतिबद्ध विस्रसोपचयका अल्पबहुत्व ४५९ कुल स्पर्धकोंका प्रमाण निर्देश प्रकृत प्ररूपणाको स्पष्ट करनेके लिए तीन एक एक स्पर्धकका कितना अन्तर होता है। अनुयोगद्वारोंका नाम निर्देश इस बातका निर्देश जीवप्रमाणानुगम अविभागप्रतिच्छेद कैसे निष्पन्न किये जाते हैं इस बातका विचार प्रदेशप्रमाणानुगम ४३४ छेदनाके दस भेद व उनका स्वरूप निर्देश ४३५ अल्पबहत्वके दो भेदोंका नाम निर्देश पाँच शरीरोंके अविभागप्रतिच्छेदोंका जीव अल्पबहुत्व अल्पबहुत्व प्रदेश अल्पबहुत्व एक एक शरीरपरमाणु पर कितने विस्र चलिका सोपचय होते हैं इस बातका निर्देश ४३८ | अगला ग्रन्थ चूलिका है इस बातकी विस्रसोपचयोंका स्थान विचार ४३९ । प्रतिज्ञा AWAN ४६५ ४६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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