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________________ पृष्ठ विषय २२४ाशी विषय पृष्ठ उसके विषय में चार अनुयोगद्वारोंका नाम । शरीरप्ररूपणा निर्देश व स्वरूप कथन २२४ | शरीरप्ररूपणाके छह अनुयोगद्वारोंका नामशरीरिशरीरप्ररूपणा निर्देश और उनकी सार्थकताका विचार ३२१ औदारिक शब्दकी नामनिरुक्ति व ऊहापोह ३२२ जीवोंके दो भेद व उनका स्वरूप निर्देश २२५ | २२५ | वैक्रियिक शब्दकी नामनिरुक्ति व ऊहापोह३२५ कौन जीव साधारणशरीर हैं और कौन जीव | आठ ऋद्धियोंके नाम ३२५ प्रत्येकशरीर हैं इस बातका निर्देश २२५ आहारक शब्दकी नामनिरुक्ति व ऊहापोह ३२७ साधारण जीवोंका लक्षण मिर्देश २२६ | | तैजस शब्दकी नामनिरुक्ति व ऊहापोह ३२७ साधारण जीवोंके अनुग्रहणका विचार २२८ तैजसशरीरके दो भेदोंका विचार ३२८ साधारण जीवोंके एकसाथ क्या क्या कार्य नि:सरणरूप तेजसशरीरके दो भेदोंका होते हैं इस बातका निर्देश २२९ विचार ३२८ साधारण जीवोंकी उत्पत्ति और मरणके कार्मण शब्दकी नामनिरुक्ति व ऊहापोह ३२८ विषयमें नियम २३० पाँच शरीरोंके प्रदेशोंके प्रमाणका निर्देश ३३० दोनों प्रकारके निगोद जीव परस्पर कैसे निषेकप्ररूपणामें छह अनुयोगद्वारोंके नाम ३३१ रहते हैं इस बातका विशेष स्पष्टीकरण २३१ समुत्कीर्तना ३३१ प्रदेशप्रमाणानुगम ३३६ बादरनिगोद और सूक्ष्म निगोद जीवोंकी अनन्तरोपनिधा योनिका विचार २३२ परम्परोपनिधा ३४६ अनन्त जीवोंने निगोदवास नहीं छोडा इस प्रदेशविरच व उसके स्वरूपनिर्देशके साथ बातका संयुक्तिक निर्देश २३३ सोलह पदवाला दण्डकविधान ३५२ एक शरीरमें रहनेवाले निगोद जीवोंका जघन्य पर्याप्त निर्वत्तिका स्वरूपनिर्देश ३५२ प्रमाण २३४ निर्वत्ति स्थानोंका विचार संसारी जीवोंका अभाव क्यों नहीं होता जीवनीयस्थान ३५४ इस बातका सहेतुक विचार इस विषय में अल्पबहुत्व निगोदके दो भेदोंका निर्देश । २३६ | खुद्दाभवके दो भेद व उनका स्वरूपनिर्देश ३६२ शरीरिशरीरप्ररूपणाका सदादि आठ अनु- एक मुहूर्त में मनुष्यके कितने श्वासोच्छ्वास योगद्वारोंके आश्रयसे कथन करने की होते हैं इस बात का निर्देश ३६२ सूचना २३७ | एक अन्तमुहूर्तमें कितने क्षुल्लक भवग्रहण ओघ और आदेशसे सत्प्ररूपणा २३७ होते हैं इस बातका नाम निर्देश ३६२ ओघ और आदेशसे द्रव्यप्रमाणप्ररूपणा २४९ प्रदेशविरचके छह अनुयोगद्वारोंका ओघ और आदेशसे क्षेत्रप्ररूपणा २५३ नामनिर्देश औदारिकशरीरकी अपेक्षा अग्रस्थिति ओघ और आदेशसे स्पर्शन प्ररूपणा आदि चारका विचार ३६७ ओघ और आदेशसे कालप्ररूपणा २५७ अग्रस्थितिका स्वरूप निर्देश ३६७ ओघ और आदेशसे अन्तरप्ररूपणा अग्रस्थितिविशेषका स्वरूप निर्देश ३६७ ओघ और आदेशसे भावप्ररूपणा ३०१ | आहारकके सिवा शेष तीन शरीरोंकी ओघ और आदेशसे अल्पबहुत्वप्ररूपणा ३०१ | औदारिकके समान जानने की सूचना ३६८ sout २८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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