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________________ २३८) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं (५, ६, १३२ सरीराणं दोण्हं चेव उवलंभादो । तिण्णि सरीराणि जेंसि जीवाणं ते तिसरीरा णाम । के ते ? ओरालिय-तेजा-कम्मइयसरीरेहि वेउब्विय-तेजा-कम्मइयसरीरेहि वा वटुमाणा । चत्तारि सरीराणि जेसि ते चदुसरीरा । के ते? ओरालिय-वेउव्वियतेजा-कम्मइयसरीरेहि ओरालिय-आहार-तेजा-कम्मइयसरीरेहि वा वट्टमाणा । जेसि सरीरं पत्थि ते असरीरा । के ते ? परिणिव्वुआ। आदेसेण गदियाणुवादेण गिरयगईए रइएसु अस्थि जीवा बिसरोरा तिसरीरा ॥१३२॥ विग्गहगदीए णेरइया विसरीरा चेव होंति, तत्थ वेउव्वियसरीरस्स उदयाभावेण तेजा-कम्मइयसरीराणं दोण्हं चेव उदयदंसणादो । पुणो तिसरीरा होंति, तत्थ वेउव्विय-तेजा-कम्मइयसरीराणं तिण्णं पि उदयदसणादो। एवं सत्तसु पुढवीसु रइया ॥१३३॥ सत्तसु पुढवीसु जे जेरइया तेसि गिरओघभंगो। विसरीर-तिसरीरत्तणेण भेदाभावादो। तिरिख्खगदीए तिरिक्ख-पंचिदियतिरिक्ख-पंचिदियतिरिक्खपज्जत्त-पंचिदियतिरिक्खजोणिणोसु ओघं ॥१३४॥ और कार्मणशरीर ये दो हो शरीर उपलब्ध होते हैं। जिन जीवोंके तीन शरीर होते हैं वे तीन शरीरवाले जीव कहलाते है । वे कौन है ? औदारिकशरीर, तंजसशरीर और कार्मणशरीरके साथ अथवा वैक्रियिकशरीर, तेजसशरीर, और कार्मणशरीरके साथ विद्यमान जीव तीन शरीरवाले हैं। चार शरीर जिनके होते हैं वे चार शरीरवाले जीव हैं । वे कौन है? औदारिकशरीर वैक्रियिकशरीर, तेजसशरीर और कार्मणशरीरके साथ अथवा औदारिकशरीर, आहारकशरीर, तैजसशरीर और कार्मणशरीरके साथ विद्यमान जीव चार शरीरवाले होते हैं। जिनके शरीर नहीं है वे अशरीरी जीव हैं । वे कौन हैं ? परिनिर्वृत्तिको प्राप्त हुए जव अशरीरी होते हैं। आदेशसे गति मार्गणाके अणुवादसे नरकगतिको अपेक्षा नारकियोंमें दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले जीव हैं ॥१३२॥ विग्रहगति में नारकी दो शरीरवाले होते हैं क्यों कि वहां पर वैक्रियिकशरीरका उदय नहीं होनेसे तैजसशरीर और कार्मणशरीर इन दो शरीरोंका ही उदय देखा जाता है । अनन्तर तीन शरीरवाले होते हैं, क्योंकि वहां वैक्रियिकशरीर, तेजसशरीर और कार्मणशरीर इन तीनों शरीरोंका ही उदय देखा जाता है । इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें नारकियोंके जानना चाहिए ॥१३३॥ सातों पृथिवियोंमें जो नारकी हैं उनमें सामान्य नारकियोंके समान भङ है, क्योंकि दो शरीरपने और तीन शरोरपने की अपेक्षा उनसे इनमें कोई भेद नहीं है । तिर्यश्चगतिकी अपेक्षा तिर्यश्च पन्चेन्द्रियतिर्यश्च, पन्चेन्द्रियतिर्यश्चपर्याप्त और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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