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________________ ५, ६, ११६ ) बंधणाणुयोगद्दारे अप्पाबहुअपरूवणा ( २१९ भागत्तादो। धुवक्खंधपढमवग्गणपमाणेण सगसव्वदव्वे कीरमाणे दिवड्ढगुणहाणिमेत्तपढमवग्गणाओ हति, समयाविरोहेणुप्पण्णगुणहाणिसलागाओ विरलिय समयाविरुद्धगुणगारेण गुणिय अण्णोण्णभत्थं कादणुप्पाइदरासिणा धुवक्खंधचरिमवग्गणाए गुणिदाए पढमवग्गणा होदि त्ति दिवड्ढगुणहाणिगुणियअण्णोण्णब्भत्थरासिणा धुवक्खंधचरिमवग्गणाए गुणिदाए धुवक्खंधसव्वदव्वं होदि । सांतरणिरंतरपढमवग्गणादो धुवक्खंधचरिमवग्गणा अणंतगुणा । को गुण ? सव्वजीवेहि अणंतगुणो । सांतर-णिरंतरपढमवग्गणपदेसुप्पायणटुं दुविदसादिरेयहेटिमअद्धाणमेत्तगुणगारादो। धुवक्खंधभंतरअण्णोण्णब्भत्थरासी अणंतगुणो, तेण सांतरणिरंतरवग्गणपदेसग्गादो धुवक्खंधवग्गणदव्वमणंतगुणमिदि सिद्धं । तस्सुवरि धुवक्खंधवग्गणाए पदेसग्गमणंतगुणं । को गुण० ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतिमभागमेत्तो। तं जहा-धुवक्खंधपढमवग्गणं टुविय दिवड्ढगुणहाणिणा गुणिदे दव्ववग्गं होदि । पुणो तं चेव पडिरासिय हेटिमअद्धाणेण अभवसिद्धिएहितो अणंतगुणेण सिद्धाणमणंतिमभागेण गणिदे धवक्खंधपदेसग्गं होदि । धवक्खंधवग्गणाए एगसेडिअद्धाणं सव्वजोवेहि अणंतगुणं ति सव्वजोवेहितो अणंतगुणो गुणगारो किण्ण दिज्जदि? ण, पढमगुणहाणिपदेसग्गस्सेव पहाणत्तदंसणादो बिदियगुणहाणिसव्वपदेसग्गस्स पढम अपेक्षा प्रथम वर्गणा ही प्रधान है, क्योंकि, शेष वर्गणाओंके सब प्रदेश उसके अनन्तवें भागप्रमाण हैं । ध्रुवस्कन्ध प्रथम वर्गणाके प्रमाणसे अपने सब द्रव्यके करने पर डेढ़ गुणहानिमात्र प्रथम वर्गणायें होती हैं। अतः आगमानुसार उत्पन्न हुई गुणहानिशलाकाओंका विरलन कर और आगमानुसार गुणकारसे गुणित कर तथा परस्पर गुणा करनेसे उत्पन्न हुई राशिसे ध्रुवस्कन्धको अन्तिम वर्गणाके गुणित करने पर प्रथम वर्गणा होती है इसलिए डेढ़ गुणहानिसे गुणित अन्योन्याभ्यस्त राशिके द्वारा ध्रुवस्कन्धकी अन्तिम वर्गणाके गुणित करनेपर ध्रुवस्कन्धका सब द्रव्य होता है । सान्तरनिरन्तर प्रथम वर्गणासे ध्रुवस्कन्धकी अन्तिम वर्गणा अनन्तगुणी है। गुणकार क्या हैं ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है, क्योंकि, सान्तरनिरन्तर प्रथम वर्गणाके प्रदेशोंको उत्पन्न करनेके लिए स्थापित साधिक अधस्तन अध्वानमात्र गुणकार है। ध्रुवस्कन्ध के भीतर अन्योन्याभ्यस्त राशि अनन्तगुणी है, इसलिए सान्तरनिरन्तरवर्गणाके प्रदेशाग्रसे ध्रुवस्कन्धवर्गणाका द्रव्य अनन्तगुणा है यह सिद्ध होता है । इसके ऊपर ध्रुवस्कन्ध वर्गणाके प्रदेशाग्र अनन्तगुणे हैं। गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है। यथा-रुवस्कन्धकी प्रथम वर्गणाको स्थापित कर डेढ गणहानिसे गणित करनेपर द्रव्यका वर्ग होता है। पूनः उसे ही प्रतिराशि बनाकर अभव्योंसे अनन्तगणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण अधस्तन अध्वानसे गणित करनेपर घ्रवस्कन्ध के प्रदेशान होते हैं। शंका- ध्रुवस्कन्धवर्गगाका एकश्रेणि अध्वान सब जीवोंसे अनन्तगुणा है, इसलिए सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार क्यों नहीं दिया जाता है ? समाधान-नहीं, क्योंकि, प्रथम गुणहानिके प्रदेशाग्रकी ही प्रधानता देखी जाती है। तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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