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________________ २१६) छवखंडागमे वग्गणा-खंड (५, ६, १६६. एगसेडिवग्गणा असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? असंखेज्जा लोगा। आहारवग्गणासु एगसेडिवग्गणा अणंतगुणा । को गुण ? आहारेगसेडिवग्गणाए® असंखे०भागो, अभव्वसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतिमभागो। को पडिभागो ? असंखेज्जपदेसियवग्गणपडिभागो। आहारवग्णादो हेट्ठिमअणंतपदेसियवग्गणासु एगसेडिवग्गणा अणंतगुणा । को गुण? अभव्वसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतिमभागो। पुन्व माहारवग्गणादो उवरि तेजा-भासा-मण-कम्मइयवग्गणाणमेगसेडिवग्गणाओ जहाकमेण अणंतगुणाओ भणिदूण पच्छा आहारवग्गणादो हेट्टिमअगहणकग्गणाए एगसेडिवग्गणा अणंतगुणा त्ति भणिदं । एहि पुग आहारएगसेडिवगणादो हेट्ठिमअगहणवग्गणाए एगसेडिवग्गणा अणंतगुणा ति भणिदं । तेण एदासि दोण्णमप्पाबहुगाणं परोप्परविरुद्धाणं एत्थ संभवो ण होदि, किंतु दोण्णमेक्केणेव होदव्वमिदि ? सच्चमेदमेक्केणेव होदव्वमिदि, किंतु अणेणेव होदव्वमिदि ण वट्टमाणकाले णिच्छओ कादं सक्किज्जदे, जिण-गणहर-पत्तेयबुद्ध-पण्णसमण-सुदकेवलिआदोणमभावादो। कम्मइयवग्गणादो हेट्ठिमआहारवग्गणादो उवरिमअगहणवग्गणमद्धाणगुणगारेहितो आहारादिवग्गणाणं अद्धाणुप्पायणटुंदुविदभागहारो अणंतगुणो त्ति के वि आइरिया एकश्रेणिवर्गणायें असंख्यातगुणी हैं । गुणकार क्या है ? असंख्यात लोकप्रमाण गुणकार है। आहारवर्गणाओंमें एकश्रेणिवर्गणायें अनन्तगुणी हैं । गुणकार क्या है ? आहार एकश्रेणि वर्गणाके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है जो अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण है । प्रतिभाग क्या है ? असंख्यातप्रदेशी वर्गणा प्रतिभाग है । आहारवर्गणासे अधस्तन अनन्तप्रदेशी वर्गणाओंमें एकश्रेणिवर्गणायें अनन्तगणी हैं। गुणकार क्या है? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है । शंका- पहले आहारवर्गणासे ऊपरकी तैजसवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा और कार्मणवर्गणाकी एकश्रेणिवर्गणायें क्रमसे अनन्तगुणी कहकर पश्चात् आहारवर्गणासे अधस्तन अग्रहणवर्गणाकी एकश्रेणिवर्गणायें अनन्तगुणी है ऐसा कहा है । परन्तु इस समय आहार एकत्रेणिवर्गणासे अधस्तन अग्रहणवर्गणाकी एकश्रेणिवर्गणायें अनन्तगुणी है ऐसा कहा है, इसलिये परस्पर विरुद्ध ये दोनों अल्पबहुत्व यहां पर सम्भव नहीं हैं। किन्तु इन दोनोंमें से कोई एक होना चाहिए ? समाधान- यह सत्य है कि इन दोनोंमें से कोई एक अल्पबहुत्व होना चाहिए, किन्तु यही अल्पबहुत्व होना चाहिए इसका वर्तमानकालमें निश्चय करना शक्य नहीं हैं, क्योंकि इस समय जिन, गणधर, प्रत्येकबुद्ध, प्रज्ञाश्रमण और श्रुतकेवली आदिका अभाव है। कार्मणवर्गणासे अधस्तन आहार वर्गणासे उपरिम अग्रहणवर्गणाके अध्वानके गुणकारसे आहारादिवर्गणाओंके अध्वानको उत्पन्न करने के लिए स्थापित भागहार अनन्तगुणा है ऐसा कितने ही आचार्य चाहते ताप्रतो- 'ओहारदव्ववग्गणाए' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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