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________________ २१४ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड (५, ६, ११६. सुहुमणिगोदा असंखेज्जगुणा? को गुण ? असंखेज्जा लोगा ति जीवट्ठाणसुत्ते परूविदत्तादो, उभयत्थ एगजीवपदेसग्गगुणगारस्स समाणत्तादो च । सांतर-णिरंतरवग्गणासु णाणासेडिसव्वपदेसा अणंतगुणा । को गुण ? सव्वजोवेहि अणंतगुणो। धुवक्खंधवग्गणासु णाणासेडिसव्वपदेसा अणंतगुणा । को गुण ? सव्वजीवेहि अणंतगुणो । तं जहा--धुवक्खंधचरिमवग्गणाए पदेसेहितो सांतरणिरंतर. वग्गणाए सव्वपदेसाणमणंतगुणहीणत्तुवलंभादो। कुदो ? जेण धुवक्खधचरिमवग्गणादव्वट्ठदादो सांतरणिरंतरवग्गणाए पढमादिसव्ववग्गणदव्वदाओ अणंतगुण. हीणाओ तेण तासि पदेसग्गं पि अणंतगुणहीणं चेव । जदि धुवक्खंधचरिमवग्गणा एक्का चेव पदेसग्गेण अणंतगुणा होदि तो धुवक्खंधसव्ववग्गणाओ णिच्छयेण अणंतगुणाओ होंति त्ति अणुत्तसिद्धं । कम्मइयवग्गणासु णाणासेडिसव्वपदेसा अणंतगुणा । को गुण ? कम्मइयवग्गणाणं अण्णोण्णब्भत्थरासी।कम्मइयवग्गणादो हेट्ठिमअगहणवग्गणासु णाणासेडिसव्वपदेसा अणंतगुणा । को गुण ०? सगअण्णोण्णब्भत्थरासी। मणदव्ववग्गणासु णाणासेडिसव्वपदेसा अणंतगुणा । को गुण • ? सगअण्णोपणभत्थरासी । मणंदो* हेटिमअगहणवग्गणासु णाणासेडिसव्वपदेसा अणंतगुणा । को गुण ? सगअण्णोण्णब्भत्थरासी । भासावग्गणासु णाणासेडिसव्वपदेसा अणंतगुणा। को गुण ? सगअण्णोण्णब्भत्थरासी। भासादो हेटिमअगहणवग्गणासु गुणकार क्या है ? असंख्यात लोक गुणकार है ऐसा जीवस्थानसूत्र में कथन किया है ? तथा दोनों जगह एक जीवके प्रदेशोंका गुणकार समाग है । सान्तर-निरन्तरवर्गणाओंमें नानाश्रेणि सब प्रदेश अनन्तगुणें है। गुणकार क्या है ? सब जोवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है। ध्रुवस्कन्ध वर्गणाओंमें नानाश्रेणि सब प्रदेश अनन्तगुणे हैं। गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है । यथा-ध्रुवस्कन्धको अन्तिम वर्गणाके प्रदेशोंसे सान्तरनिरन्तरवर्गणाके सब प्रदेश अनन्तगुणे होन उपलब्ध होते हैं, क्योंकि यतः ध्रुवस्कन्धको अन्तिम वर्गणाको द्रव्यार्थतासे सान्तरनिरन्तरवर्गणाकी प्रथमादि सब वर्गणाओंकी द्रव्यार्थताये अनन्तगुणी हीन हैं, इसलिए उनके प्रदेशाग्र भी अनन्तगुणे हीन हो हैं। यदि ध्रुवस्कन्धको अन्तिम वर्गणा अकेली ही प्रदेशाग्रकी अपेक्षा अनन्तगुणी है तो ध्रुवस्कन्ध सब वर्गणायें निश्चयसे अनन्तगुणो है यह अनुक्तसिद्ध है। कार्मणवर्गणाओंमें नानाश्रेणि सब प्रदेश अनन्तगुण है। गुणकार क्या है ? कार्मणवर्गणाओंको अन्योन्याभ्यस्त राशि गुणकार है । कार्मणवर्गणासे नीचेकी अग्रहणवर्गणाओंमें नानाश्रेणि सब प्रदेश अनन्तगुण हैं। गुणकार क्या है ? अपनी अन्योन्याभ्यस्त राशि गुणकार है। मनोद्रव्यवर्गणाओंमें नानाश्रेणि सब प्रदेश अनन्तगुणे हैं। गुणकार क्या है ? अपनी अन्योन्याभ्यस्त राशि गुणकार है। मनोवर्गणासे अधस्तन अग्रहणवर्गणाओंमें नानाश्रेणि सब प्रदेश अनन्तगुणे हैं। गुणकार क्या है ? अपनी अन्योन्याभ्यस्त राशि गुणकार है । भाषावर्गणाओंमें नानाश्रेणि सब प्रदेश अनन्तगुणे हैं। गुणकार क्या है ? अपनी अन्योन्याभ्यस्त राशि गुणकार प्रतिषु 'अगंत गुणहोणा' इति पाठः। * अ-आ प्रत्योः 'मणादो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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