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________________ २१० ) छक्खंडागमे वग्गणा - खंड ( ५, ६, ११६ गुणत्तादो, सरिसधणियवग्गणाणं तव्वग्गणाहितो असंखेज्जगुणत्तादो वा । अथवा गुणगारो असंखज्जा लोगा। कुदो? वट्टमाणासेमवग्गणप्पणादो। सुहुमणिगोदवग्गणाहितो कथं पत्तेयसरीरवग्गणाणमसंखेज्जगुणत्तं जुज्जदे ? ण, एगजीवेण वि पत्तेयसरीरवरगणापित्तदो, अनंतेहि जीवेहि विणा सुहुमणिगोद वग्गणाणुप्पत्ती दो । सांतरणिरंतरवग्गणाए णाणासेडिसव्वदव्वमणंतगुणं । को गुणगारो ? सव्वजीवेहि अनंतगुणो । कुदो ? तत्थतणजहण्णवग्गणाए वि उक्कस्सेण अतस रिसधणियवग्गणुवलंभादो । धुवखंधवग्गणाए णाणासेडिसव्वदव्वा अनंतगुणा । को गुण० ? सव्वजीवेहि अनंतगुण । दिवगुणहाणिगुणिद सगणाणागुणहाणिसला गाणमण्णोष्णन्भत्य रासि त्ति भणिदं होदि । कम्मइयवग्गणाए णाणासेडिसव्वदव्वा अनंतगुणा । को गुण० ? कम्मइयवग्गणउभंतरणाणागुणहाणिस लागाओ विरलिय विगं करिय अण्णोष्णेव गुणिदरासी गुणगारो । कुदो ? धुवक्खंधदव्वे सगपढवग्गणपमाणेण कीरमाणे दिवढगुणहाणि - पढमवग्गणाओ होंति । पुणो कम्मइयदव्वे वि सगपढमवग्गणपमाणेण कीरमाणे दिवगुणहाणिमेत्तपढमवग्गणाओ उप्पज्जंति । एत्थतणएगमपढमवग्गणाए कम्मइयअण्णोष्णब्भत्थरासिमेत्ताओ धुववखंधपढमवग्गणाओ होंति त्ति अण्णोष्णन्भत्थरासिणा गुणिदे एत्तियाओ कम्म इयवगग्णाओ ध्रुवक्खंधपढमवग्गणाओ उप्पज्जंति । संपहिय है । अथवा उन वर्गणाओंसें सदृश धनवाली वर्गणायें असंख्यातगुण हैं | अथवा गुणकार असंख्यात लोकप्रमाण है, क्योंकि वर्तमान कालकी समस्त वर्गणाओंकी मुख्यता है । शंका- सूक्ष्मनिगोदवर्गणाओंसे प्रत्येकशरीरवर्गणायें असंख्यातगुणी कैसे बन सकती है ? समाधान- नहीं, क्योंकि एक जीवके द्वाराभी प्रत्येकशरीरवर्गणाकी निष्पत्ति होती है और अनन्त जीवोंके बिना सूक्ष्मनिगोदवर्गणाकी उत्पत्ति नहीं हो सकती । सान्तरनिरन्तरवर्गणा में नानाश्रेणि सब द्रव्य अनन्तगुणा है । गुणाकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है, क्योंकि वहां की जघन्य वर्गणा में भी उत्कृष्टसे अनन्त सदृश धनवाली वर्गणायें उपलब्ध होती हैं । धुवस्कन्धवर्गणा में नानाश्रेणि सब द्रव्य अनन्तगुणें हैं । गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है । डेढ़ गुणहानिसे गुणित अपनी नाना गुणानिशलाकाओं की अन्योन्याभ्यस्त राशि गुणकार है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । कार्मणवर्गणा में नानाश्रेणि सब द्रव्य अनन्तगुणा है । गुणकार क्या है ? कामवर्गणा के भीतर नाना गुणहानिशलाओंका विरलन कर व दूना कर परस्पर गुणित करने से उत्पन्न हुई राशि गुकका र है, क्योंकि स्कन्ध द्रव्यके अपनी प्रथम वर्गणाके प्रमाणसे करनेपर डेढ़ गुणहानिमात्र प्रथम वर्गणायें होती हैं । पुनः कार्मणद्रव्यकें भी अपनी प्रथम वर्गणाके प्रमाणसे करने पर डेढ़ गुणहानिमात्र प्रथम वर्गगायें उत्पन्न होती हैं। यहांकी एक प्रथम वर्गणामे कार्मण अन्योन्याभ्यस्त राशिमात्र ध्रुवस्कन्धकी प्रथम वर्गणायें होती हैं इसलिए अन्योन्याभ्यस्न राशिके गुणित करनेपर इतनी कार्मंगवर्गणायें ध्रुवस्कन्ध प्रथम वगणायें उत्पन्न होती हैं । अब डेढ़ गुणहानिमात्र ध्रुवस्कत्ध For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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