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________________ ५, ६, ११६.) बंधणाणुयोगद्दारे अप्पाबहुपरूवणा (२०९ लन्भंति । तेण असंखेज्जालोगा गुणगारो ति सिद्धं । सुहमणिगोदवग्गणाए णाणासेडिसव्वदव्वा असंखेज्जगुणा। को गुणगारो ? आवलि० असंखे भागो कुदो ? विसेसाहियवग्गणपमाणादो । उभयत्थ तिण्णिगुणहाणिमेत्तजवमझे संतेसु कथं बादरणिगोदव्वग्गणाहितो सुहमणिगोदवग्गणाणमसंखेज्जगुणत्तं जुज्जदे ? ण, बादरणिगोदजवमज्झसरिसधणिवग्गणाहितो सुहमणिगोदजवमज्झसरिसधणियवग्गणाणमसंखेज्जगुणतुवलंभादो । को गुण ? आवलि० असंखे०भागो। कुदो एदं णव्वदे ? अविरुद्धाइरियवयणादो। अथवा गुणगारो असंखेज्जा लोगा। कुदो ? वट्टमाणकालसयलवग्गणग्गहणादो, बादरणिगोदपुलवियाहिंतो सुहमणिगोदपुलवियाणमसंखेज्जगुणतुवलंभादो को गुण ? असंखेज्जा लोगा। एदाहि पुलवियाहिंतो वग्गणपमाणं पुव्वं व अःणेयव्वं । पत्तेयसरीरवग्गणाए णाणासेडिसव्वदव्वा असंखेज्जगुणा । को गुण० ? आवलि० असंखे०भागो कुदो ? विसेसाहियवग्गणप्पणाए। उभयत्थ ति(ण्णगुणहाणिमेत्तजवज्झेसु संतेसु कथं पत्तेयसरीरवग्गणा णमसंखेज्जगुणतं ? ण, सुहमणिगोदगुणहाणीदो पत्तेयसरीरगुणहाणीए असंखेज्ज हैं । इसलिये गुणकार असंख्यात लोकप्रमाग है यह बात सिद्ध होती है। सूक्ष्मनिगोदवर्गणाके नानाश्रेणि सब द्रव्य असंख्यात गुणे हैं ? गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है, क्योंकि विशेष अधिक वर्गणाओंका प्रमाण लिया गया है। शंका- उभयत्र तीनगुणहानिमात्र यवमध्योंके रहने पर बादरनिगोदवर्गणाओंसे सूक्ष्मनिगोदवर्गणायें असंख्यातगुणी कैसे बन सकती है ? समाधान- नहीं, क्योंकि बादरनिगोद यवमध्य सदृश धनवाली वर्गणाओंसे सूक्ष्मनिगोद यवमध्य सदृश धनवाली वर्गणायें असंख्यातगुणी उपलब्ध होती है। गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान- अविरुद्ध आचार्योंके वचनसे जाना जाता है अथवा गुणकार असंख्यात लोकप्रमाण है, क्योंकि वर्तमान कालकी सब वर्गणाओंका ग्रहण किया है । तथा बादरनिगोदपुलवियोंसे सूक्ष्मनिगोदपुलवियां असंख्यातगुणी उपलब्ध होती है। गुणकार क्या है ? असंख्यात लोकप्रमाण गुणकार है। इन पुलवियोंके आलम्बनसे वर्गणाओंका प्रमाण पहलेके समान लाना चाहिए । प्रत्येकशरीरवर्गणाके नानाश्रेणि सब द्रव्य असंख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या ! आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार हैं, क्योंकि विशेष अधिक वर्गणाओंकी मुख्यता है । शंका- उभयत्र तीन गुणहानिप्रमाण यवमध्योंके रहनेपर प्रत्येकशरीरवर्गणायें असंख्यातगुणी कैसे हे ? समाधान- नहीं, क्योंकि सूक्ष्मनिगोदकी गुणहानिसे प्रत्येकशरीरकी गुणहानि असंख्यात माता प्रतौ 'वग्गणप्पमाणाए' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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