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________________ २०६) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड (५, ६, ११६. चेव वग्गणाणमुवलंभादो। पुणो एदेण तिसु गुणहाणीसु गुणिदासु अभवसिद्धियपाओग्गसव्वजहण्णभागहारो होदि । एवं जाणिदण णेयव्वं जाव उक्कर सपत्तेयसरीरवग्गणे त्ति। संपहि उक्कस्सपत्तेयसरीरवग्गणाए भागहारो वुच्चदे।तं जहा- जवमज्झादो उवरिमणाणागुणहाणिसलागाओ आवलियाए असंखे०भागमेत्ताओ होंति । पुणो एदाओ विरलिय विगं करिय अण्णोण्णगुणिदरासिपमाणं पि आवलियाए असं०भागमेत्तं होदि। पुणो एदेण अण्णोण्णब्भत्यरासिणा तिसु गुणहाणीसु गुणिदासु उक्कस्सपत्तेयसरीरवग्गणभागहारो होदि । भागाभागं-अभव सिद्धियपाओगसव्वजहण्णवग्गणाओ सव्वदव्वस्स केवडियो भागो? असंखेज्जदिभागो अणंतिमभागो वा। कुदो ? सयलद्धाणवग्गणग्गहणादो। एवं णेदव्वं जाव उक्कस्सपत्तेयसरीरवग्गणे त्ति । ___अप्पासहुगं-सव्वत्थोवाओ उक्कस्सट्टाणे पत्तेयसरीरवग्गणाओ। जहण्णट्ठाणे पत्तेयसरीरवग्गणाओ असंखेज्जगुणाओको गुणगारो? आवलियाए असंखे०भागो। जवमज्झट्ठाणे पत्तेयसरीरवग्गणाओ असंखेज्जगुणाओ। को गुणगारो ? आवलि. असंखे०भागो । जवमज्झादो हेढा पत्तेयसरीरवग्गणाओ असंखेज्जगुणाओ । को गुणगारो ? किंचूणदिवड्डगुणहाणीयो । जवमज्झस्सुवरिमवग्गणाओ विसेसाहियाओ। केत्तियमेत्तेण? जवमज्झस्सुवरिमजहण्णपत्तेयसरीरसरिसवग्गणाणमुवरिमवग्गणमेत्तेण। असंख्यातवें भागप्रमाण ही वर्गणाओंकी उपलब्धि होती है पुनः इनके द्वारा तीन गुणाहानियोंके गुणित करने पर अभव्योंके योग्य सबसे जघन्य भागहार होता है इस प्रकार जान कर उत्कृष्ट प्रत्येक शरीरवर्गणाके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए । __ अब उत्कृष्ट प्रत्येकशरीरवर्गणाका भागहार कहते हैं । यथा-यवमध्यके ऊपर नाना गुणहानिशलाकायें आवलिके असंख्यातवें भामप्रमाण होती हैं। पुनः इनका विरलन करके और दूनी करके परस्पर गुणा करनेसे उत्पन्न हुई राशिका प्रमाण भी आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है । पुनः इस अन्योन्याभ्यस्तराशिसे तीन गुणहानियोंके गुणित करने पर उत्कृष्ट प्रत्येकशरीरवर्गणाका भागहार होता है । भागाभाग-अभव्योंके योग्य सबसे जघन्य वर्गणायें सब द्रव्य के कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण या अनन्तवें भागप्रमाण है, क्योंकि, समस्त अध्वानकी वर्गणाओंको ग्रहण किया है। इस प्रकार उत्कृष्ट प्रत्येकशरीरवर्गणाके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए । ____ अल्पबहुत्व- उत्कृष्ट स्थान में प्रत्येकशरीरवर्गणायें सबसे स्तोक हैं। इनके जघन्य स्थानमें प्रत्येकशरीरवर्गणायें असंख्यातगणी हैं। गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । इनसे यवमध्यस्थानमें प्रत्येकशरीरवर्गणाये असंख्यातगुणी हैं । गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । इनसे यवमध्यके नीचे प्रत्येकशरीरवर्गणायें असंख्यातगुणी हैं। गुणकार क्या है? कुछ कम डेढगुणहानिप्रमाण गुणकार है । इनसे यवमध्यसे उपरिम वर्गणायें विशेष अधिक हैं। कितनी अधिक हैं? यवमध्यसे उपरिम जघन्य प्रत्येकशरीरवर्गणाओंके समान उपरिम वर्गणाओंके ऊपरवाली वर्गणाओं मात्रसे अधिक हैं। इनसे सब * तापतौ- 'बग्गाओ (जहणटाणे ) असंखेज्जगणो' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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