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________________ ५, ६, ११६.) बंधणाणुयोगद्दारे जवमज्झपरूवणा (२०३ सव्वरूवधरिदेसु परिवाडीए पविठेसु उप्पज्जदि। पुणो पढमदुगुणवडिवग्गणपमाणेण अणंताओ वग्गणाओ उरि गंतूण तदो एगवारेण बेवग्गणामो अहियाओ होति । तं जहा-पुव्वुत्तअवट्ठिदविरलणाए पढमदुगुणड्डि समखंडं कादूण दिण्णे एक्केक्कस्स रूवस्स बेबे पत्तेयसरीरवग्गणाओ पार्वति । पुणो एत्थ एगरूवधरिदे पढमदुगु गवड्ढ.ए पक्खित्ते विसेसाहियउवरिमवग्गणपमाणं होदि । एवमणंताओ वग्गणाओ समाणाओ होदूण उरि गच्छति । तदो जा उवरिमअणंतरवग्गणा तिस्से बे वग्गणाओ अहिया होति। एवं जाणिदूण णेयव्वं जाव बिदियदुगुणवड्ढ त्ति । पुणो बिदियदुगुणवडिपमाणेण अणंताओ वग्गणाओ गंतूण तदो जा अणंतरउवरिमवग्गणा तत्थ एगवारेण चत्तारि वग्गणाओ अहियाओ होति । तं जहा-पुवुत्तअवट्ठिदविरलणाए बिदियदुगुणड्ढि समखंडं काढूण दिण्णे एक्केक्कस्स रूवस्स चत्तारि वग्गणाओ पावेंति । पुणो एत्थ एगरूवरिदं घेतूण पक्खित्ते तदणंतरवग्गणपमाणं होदि । पुणो उवरि जाणिदूण यव्वं जाव जवमज्झे ति । पुणो जवमज्झपमाणेण उवरि अणंताओ वग्गणाओगंतूण तदो जा उवरिमअणंतरवग्गणा तत्थ असंखेज्जाओ वग्गणाी ज्झीयंति। तं जहाजवमज्झस्स हेट्ठिमभागहारं दुगुणं विरलेदूण जवमज्झ समखंडं कादूण दिण्णे एक्केक्कस्स रूवस्स पक्खेवपमाणं पावदि । पुगो एत्थ एगरूवधरिदमेत्तं जवमज्झम्मि अवणिदे विसेसहीणवग्गणपमाणं होदि । पुणो अणेण पमाणेण अणंताओ वग्गणाओ कर ले जाना चाहिये । परन्तु वह अवस्थित विरलन के सब विरलन अंकोंके प्रति प्राप्त द्रव्यमें क्रमसे प्रविष्ट होने पर उत्पन्न होती है । पुनः प्रथम द्विगुणवृद्धि वर्गणाके प्रमाणसे अनन्त वर्गणायें ऊपर जाकर अनन्तर एक बारमें दो वर्गणायें अधिक होती हैं। यथा-पूर्वोक्त अवस्थित विरलनके ऊपर प्रथम द्विगुणवृद्धि के समान खण्ड करके देनेपर एक एक विरलन अंकके प्रति दो दो प्रत्येक शरीरवर्गणायें प्राप्त होती हैं। पुनः यहां एक विरलन अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको प्रथम द्विगुण वृद्धिमें मिलाने पर विशेष अधिक उपरिम वर्गणाका प्रमाण प्राप्त होता है। इस प्रकार अनन्त वर्गणायें समान होकर ऊपर जाती हैं। अनन्तर जो उपरिम अनन्तर वर्गणा है उसकी दो वर्गणायें अधिक होती हैं। इस प्रकार दूसरी द्विगुणावृद्धिके प्राप्त होने तक जानकर ले जाना चाहिए । पुनः दूसरी द्विगुणवृद्धि के प्रमाणसे अनन्त वर्गणायें जाकर जो अनन्तर उपरिम वर्गणा है वहां एक साथ चार वर्गणायें अधिक होती हैं । यथा-पूर्वोक्त अवस्थित विरलनके प्रति द्वितीय द्विगुणवृद्धिको समान खण्ड करके देने पर एक एक विरलन अंकके प्रति चार वर्गणायें प्राप्त होती हैं। पूनः यहां एक विरलन अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको ग्रहणकर मिलाने पर तदनन्तर वर्गणाका प्रमाण प्राप्त होता है। पुन: ऊपर यवमध्यके प्राप्त होनेतक जानकर ले जाना चाहिए। पुनः यवमध्यके प्रमाणसे ऊपर अनन्त वर्गणायें जाकर उसके बाद जो उपरिम अनन्तर वर्गणा है वहां असंख्यात वर्गणायें गल जाती है। यथा-यवमध्यके दूने अधस्तन भागहारका विरलन करके उस पर यवमध्यके समान खण्ड करके देने पर एक एक विरलन अंकके प्रति प्रक्षेपका प्रमाण प्राप्त होता है । पुनः यहां एक विरलन अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको यवमध्य में से घटा देनेपर विशेष हीन वर्गणाका प्रमाण प्राप्त होता है। पुनः इस प्रमाणसे अनन्त वर्गणायें जाकर जो अनन्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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