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________________ १९८ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६, ११६ अद्धेण गुणिय | ६४ २७ पुवरासिम्हि भागे हिदे किंचूणत्तमजोएदूण गुणगारभागहारमवणि दे एत्तियं होदि (६२/ पुणो एदेण गुणहाणि गुणिदे एत्तियं होदि १३२।। पुणो हेद्विमदोगुणहाणिदब्वे पविखत्ते एत्तियं होदि २/३७ । भागे हिदेएत्तियं होदि |२३ । चत्तारिसत्तावीसभागहीणचत्तारिगुणहाणीयो किंचूणत्तमजोएदूण जवमज्झ। २७/ पमाणेण सव्वदव्वे अवहिरिज्माणे चत्तारिगुणहाणिढाणंतरेण कालेण अवहिरिज्जदि । परमाणुपोग्गलदव्वपमाणेण सव्वदन्वं केवचिरेण कालेण अवहिरिज्जदि ? गुणहाणिवग्गेण सचउब्भागदोरूवाणिदेण। कुदो ? परमाणुपदेसद्वदाए सव्वदन्दे भागे हिदे सचउब्भागदोरूवगुणिदगुणहाणिवग्गवलंभादो। दुपदेसियवग्गणपदेसट्टदाए पमाणेण सम्बदव्वं केवचिरं कालेण अवहिरिज्जदि? पुवभागहारादो अद्धसादिरेयमेत्तेणकालेण अवहिरिज्जदि । तं जहा- परमाणवग्गणभागहारस्सद्धं विरलिय सव्वदम्वे समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि दुगणपरमाणुवग्गणपमाणं पावदि। पुणो हेट्ठा दोगुणहाणीयो पुन: पहले स्थापित की गई प्रतिराशिको सत्ताईसके अर्धभागसे गुणित कर | ६४।२५और इनका पूर्व राशिमें भाग देने पर कुछ कमकी विवक्षा न कर भागहार और गुणकारका परस्पर अपनयन करने पर इतना होता है-६२i । पुनः इससे गुणहानिके गुणित करनेपर इतना होता है. | १६२ पुनः अधस्तन दो गुणहानियों का द्रव्य मिलाने पर इतना होता है-15।१०। । भाग देने पर । २७ इतना होता है। | चार बटे सत्ताईस भागहीन चार गुणहानियों में कुछ कमकी विवक्षा न २७ कर यवमध्य के प्रमाणसे सब द्रव्यके अपहृत होनेपर चार गुणहानिस्थानांतर कालके द्वारा अपहृत होता है । परमाणुपुद्गलद्रव्यप्रमाणसे सब द्रव्य कितने कालके द्वारा अपहृत होता है ? चतुर्थभागयुक्त दोसे गुणित गुणहानिके वर्गरूप कालके द्वारा अपहृत होता है, क्योंकि. परमाण प्रदेशार्थतासे सब द्रव्यके भाजित करने पर चतुर्यभागयुक्त दोसे गुणित गणहानिका वर्ग उपलब्ध होता है। (३३४४८: २५६ - १३० अर्थात ८४८४२+ F ) द्विप्रदेशीवर्गणा प्रदेशार्थताके प्रमाणसे सब द्रव्य कितने कालके द्वारा अपहृत होता है? पूर्वभागहारसे साधिक अर्धभागमात्र कालके द्वारा अपहृत होता है । यथा- परमाणुवर्गणाके अर्धभागके अर्धभागका विरलनकर सब द्रव्यको समान खण्डकर देनेपर प्रत्येक एक विरलनके प्रति द्विगुणपरमाणुवर्गणाका प्रमाण प्राप्त होता है । पुनः र ता० प्रती ' पुव्वभागहार दो अद्ध-' इति पाठः 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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