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________________ बधणाणुयोगद्दारे अवहाररूवणा उत्तरगुणिदं इच्छं उत्तरआदीए संजुदं अवणे । सेस हरेज्ज पडिणा आदिमछेदद्धगुणिदेण ।। १६ ॥ एदाति गाहाणमत्थो उच्चदे-इच्छिदगच्छं विरलेहूण विगं करिय अण्णोण्णभस्थरासि दुप्पडिरासि करिय एत्थ उत्तरं णव आदी बावीस, एदे मेलिदे एक्कत्तीस भवंति । एदेहि एक्कासि गुणिय उत्तरगुणिदं इच्छं- ति मणिदे इच्छं गवहि गुणिऊण उत्तरआदीय संजदं अवणे ति भणिदे उत्तरं आदि च तत्थ मेलाविय पुवरासिम्हि अवणेऊण सेसं हरेज्ज पडिणा आदिमछेबद्धगणिदेणे त्ति भणिदे अवसेस टुविदपडिरासि सत्तावीसहं अद्धेण गुणिय भागे हिदे इच्छिदसंकलणा आगच्छदि । __ तदो एदेण अत्थपदेण दुरूवणगुणहाणिसलागाओ विरलिय विगं करिय अण्णोण्णभत्थे कदे एत्तियं होदि । एदं (दु) पडिरासि दृविय एक्करासि इगितीसरू वेहि गुणिदे एत्तियं होदि ९ ३१ । पुणो एदम्हि दुरूवूणगुणहाणिसलागाओ णवगुणाओ आदिउत्तरइगितीसरूवब्भहियाओ अवणिय पुणो पडिट्ठविदरासि सत्तावीसहं आदि राशिसे गुणित कर इसमें से उत्तर गुणित और उत्तर आदि संयुक्त इच्छाराशिको घटा देनेपर जो शेष रहे उसमें आदिम छेदके अर्धभागसे गुणित प्रतिराशिका भाग देनेपर इच्छित संकलनका प्रमाण आता है ।। १५-१६ ।। __ अब इन गाथाओका अर्थ कहते हैं- इच्छित गच्छका विरलन कर और उसे दूना कर परस्पर गुणा करने से जो राशि आवे उसकी दो प्रतिराशियाँ स्थापित करे। यहाँ उत्तर नौ और आदि बाईस को मिलाने पर इकतीस होते हैं, इनसे एक राशिको गुणित करे। पुनः — उत्तरगुणि दं इच्छं' ऐसा कहनेपर इच्छाराशिको नौसे गुणित करके और इसमें · उत्तर आदीय संजुदं अवणे' ऐसा कहनेपर उत्तर और आदिको मिलाकर पूर्वराशि में से घटा कर ' सेसं हेरज्ज पडिणा आदिमछेदद्धगुणिदेण' ऐसा कहनेपर जो शेष रहे उसमें पहले स्थापित की गई प्रतिराशिको सत्ताईसके ओघसे गुणित कर भाग देनेपर इच्छितसंकलना आती है। अनन्तर इस अर्थपदके अनुसार दो कम गुणहानिशलाकाओंका विरलन कर और दूना कर परस्पर गुणा करनेपर इतना होता है ।।। इसकी दो प्रति राशियाँ स्थापित कर एक राशिके इकतीस से गुणिन करनेपर इतना होता है- ।। पुन: इसमें से नौगुणित तया आदि-उत्तर इकतीस सहित दो कम गुणहानिशलाकाओंको घटा कर ता०प्रतो | १४३६| इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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