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________________ बंधणाणुयोगदारे अवहारपरूबणा ३०७२ । पुणो एत्थ दिवगणहाणिणा १२ सव्वदव्वे भागे हिदे परमाणुवग्गणा आगच्छदि २५६ । पुणो दुपदेसियवग्गणपमाणेण सव्वदव्वं केवचिरेण कालेण अव - हिरिज्जाद ? सादिरेयदिवङ्गणहाणिट्राणंतरेण कालेण अवहिरिज्जदि । एवमवरि जाणिदूण णेयव्वं । णवरि दिवगुणहाणिच्छेदगएहि उक्कस्सअसंखेज्जासंखेज्जच्छेदणएसु भागे हिदेसु जं भागलद्धं तं विरलेदूण उक्कस्सअसंखेज्जासंखेज्जच्छेदणएसु समखंडं कादूण दिण्णेसु एक्केक्कस्स रूवस्स दिवगुणहाणिच्छेदणयपमाणं पावदि । पुणो* एत्थ रूवणविरलणमेतरूवधरिददिवगणहापिच्छेदणयमेत्तगुणहाणीओ जाव चडंति ताव असंखेज्जलोगमेतकालेण अवहिरिज्जदि। तदुवरि अणतेण कालेण अवहिरिज्जदि । एवं णेयव् जाव असंखेज्जभागहीणवग्गणाणं चरिमवग्गणे त्ति। तदो संखेज्जभागहीणवग्गणाणं पढमवग्गणपमाणेण सव्वदच्वं केवचिरेण कालेण अवहिरिज्जदि ? अणतेण कालेण अवहिरिज्जदि । तं जहा- संखेज्जभागहीणवग्गणाणं पढमवग्गणाए सव्ववग्गणदवेर भागे हिदे जं भागलद्धं तं सलागभूदं टुवेदूण पुणो तव्ववग्गणपमाणेण सव्वदव्वे अवहिरिज्जमाणे सलागमेत्तेण कालेण अवहिरिज्जदि । एवं जाणिदूण यवं जाव महाखंधदव्ववग्गणे ति)। करने पर परमाणुवर्गणा २५६ आती है। पुनः द्विप्रदेशी वर्गणाके प्रमाणके सब द्रव्य कितने कालके द्वारा अपहृत होता है ? साधिक डेढ गुणहानिस्थानान्तर कालके द्वारा अपहृत होता है। इसी प्रकार ऊपर भी जानकर ले जाना चाहिए। इतनी विशेषता है कि डेढगुणहानिके अर्धच्छेदोंसे उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातके अर्धच्छेदोंके भाजित करनेपर जो भाग लब्ध आवे उसका विरलन करके उस विरलित राशि पर उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातके अर्धच्छेदोंको समान खण्ड करके देयरूपसे देने पर एक एक विरलन अङ्कके प्रति डेढ गुणहानिके अर्धच्छेदोंका प्रमाण प्राप्त होता है । पुनः यहां पर एक कम विरलन प्रमाण अङ्कोंके प्रति प्राप्त डेढ गुणहानिके अर्धच्छदोंप्रमाण गुणहानियोंके आगे जाने तक वह असंख्यात लोकप्रमाण कालके द्वारा अपहृत होता है। उसके आगे अनन्त कालके द्वारा अपहृत होता है। इस प्रकार असंख्यातभागहीन वर्गणाओंमें अन्तिम वर्गणाके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिये। उसके बाद संख्यातभागहीन वर्गणाओंकी प्रथम वर्गणाके प्रमाणसे सब द्रव्य कितने कालके द्वारा अपहृत होता है ? अनन्त कालके द्वारा अपहृत होता है। यथा- संख्यातभागहीन वर्गणाओंकी प्रथम वर्गणाके प्रमाणसे सब वर्गणाओंके द्रव्यमें भाग देने पर जो भाग लब्ध आवे उसे शलाकारूपसे स्थापित करके पुन: उस वर्गणाके प्रमाणसे सब द्रपके भाजित करने पर शलाकाप्रमाण कालके द्वारा अपहृत होता है । इस प्रकार जानकर महास्कन्धवर्गणाके प्राप्त होने तक कथन करना चाहिये। ४ अ० प्रती '-पमाण होदि । पुणो ' इति पाठः । ता० प्रती 'पढमवग्गणपमाणेण सव्वदव्वं केवचिरेण कालेण अ० ? सव्ववग्गणदव्वे' इति पाठ।। ॐ अ० का प्रत्यो। 'महाखंधवग्गणे त्ति ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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