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________________ १८४ ) ( ५, ६, ११६ संपहि अणंतरोवणिधाए दव्वट्ठिद संदिट्ठिविधि वत्तइस्सामा । तं जहा - परमाणुदव्ववग्गणा संदिट्ठीए बेसदछप्पण्णपमाणा त्ति २५६ घेत्तव्वा । पुणो विसेसहीणकमेण णेयव्वं जाव धुवक्बंधम्मि असंखेज्जभागहीण वग्गणाणं चरिमवग्गणेति । सा वि संदिट्ठीए व इदि गेव्हियव्वा । सेसं वेयणदव्वविहाणेण भणिदविहाणं संभलिदूण वत्तव्वं । णवरि एत्थ गुणहाणिअद्वाणं णिसेगभागहारपमाणं च असंखंज्जा लोगा । संपहि पदेसट्ठदाए भण्णमाणाए पुव्वत्तसंदिट्ठ दृविय तत्थतणपरमाणुपोग्गलदव्ववग्गणाए एगपरमाणुणा गुणिदाए तिस्से पदेसपमाणं होदि । दुपदेसियव्वग्गणाए दोहि गुणिदाए दुपदेसियवग्गणपदेसपमाणं होदि । तिपदेसियदव्ववग्गगए तीहि गुणिदाए तिपदेसियवग्गणपदेसपमाणं होदि । चदुपदेसियदव्ववग्गणाए चदुहि गुणिदाए चदुपदेसियवग्गणपदेसवमाणं होदि । एवं पंचगुणादिकमेण णेयव्वाओ जाव धुववखंधवग्गणाओ पिट्टिदाओ त्ति । एवं गुणणविहाणे कदे दव्वट्टदाए जं गुणहागिअद्वाणं भणिदं परमाणुवग्गणप्पहूडि तमुवरि सगलं गंतूण पुणो बिदियगुणहाणीए सयलद्धम्मि उवरि चडिदे तम्हि पदेसे दोसु वग्गणट्ठाणेसु एगलद्वाणि वेजवमज्झाणि होंति । तेसिमेसा संदिट्ठी छक्खंडागमे वग्गणा-खंड अब अनन्तरोपनिधा में द्रव्यार्थताकी सदृष्टिविधिको बतलाते हैं । यथा- - संदृष्टि में परमाणु द्रव्यवर्गणा दोसौ छप्पन २५६ लेनी चाहिए । पुनः ध्रुवस्कन्ध में असंख्यात भागहीन वर्गणाओंमेंसे अन्तिम वर्गणाके प्राप्त होने तक विशेष हीनक्रमसे ले जाना चाहिए। वह भी दृष्टि नो ९ लेनी चाहिए । शेष वेदनाद्रव्यविधानकी अपेक्षा कही गई विधिको स्मरण करके कहना चाहिए। इतनी विशेषता है कि यहाँ पर गुणहानिअध्वान और निषेकभागहारका प्रमाण असंख्यात लोक है । अब प्रदेशार्थताकी अपेक्षा कथन करने पर पुर्वोक्त सदृष्टिको स्थापित करके वहाँकी परमाणुपुद्गलद्रव्य वर्गणाको एक परमाणुसे गुणित करनेपर उसके प्रदेशोंका प्रमाण होता है । द्विप्रदेशी द्रव्यवणाको दोसे गुणित करने पर द्विप्रदेशी वगंणाके प्रदेशोंका प्रमाण होता है ! त्रिप्रदेशी वर्गणाको तीनसे गुणित करनेवर त्रिप्रदेशी वर्गणा के प्रदेशों का प्रमाण होता है । चतुः प्रदेशी द्रव्यवर्गणाको चारसे गुणित करनेपर चतुःप्रदेशी वर्गणा के प्रदेशोंका प्रमाण होता है। इस प्रकार ध्रुवस्कन्ध वर्गणाओंके समाप्त होनेतक पाँचगुणे आदिके क्रमसे ले जाना चाहिए। इस प्रकार गुणविधि करने पर द्रव्यार्थताकी अपेक्षा जो परमाणु वर्गणासे लेकर गुणहानिअध्वान कहा है वह ऊपर सब जाकर पुनः दूसरी गुण'हनिका सकलार्थ ऊपर जानेपर उस स्थान में दो वर्गणास्थानों में एक साथ लब्ध हुए दो यवमध्य होते हैं । उनकी यह संदृष्टि है ( संदृष्टि मूलमें दी है ) । विशेषार्थ-द्रव्यार्थताकी अपेक्षा संदृष्टि- परमाणु द्रव्यवर्गणा २५६ और अन्तिम वर्गण ९ बतलाई है । इसकी रचना वेदनाद्रव्यविधानकी अपेक्षा इस प्रकार है- Jain Education ster साo का० प्रत्यो 'दव्वदृद-' इति पाठ: म प्रतिपाठोऽयम् प्रतिषु 'तंपि पदेसे इति पाठ: w.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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