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________________ ५, ६, ११६. ) बंधणाणुयोगद्दारे उवणिधापरूवणा ( १७९ रूवणक्कस्ससंखेज्जयं एगरूवस्स असंखेज्जदि०भागेण ऊणयं । एत्थ कारणं सुगमं । एवं वग्गणप्पाबहुगं समत्तं । एवं चोद्दसेहि अणुयोगद्दारेहि वग्गणाए सह वग्गणदव्व. समुदाहारो ति समत्तमणुयोगद्दारं ।। संपहि अणंतरोवणिधा णाम जमणुयोगद्दारं तस्स परूवणं कस्तामो । तं जहा--अणंतरोवणिधा दुविहा--दवढदा पदेसट्टदा । दध्वटदाए अणंतरोवणिधा वग्गणदव्वसमुदाहारे चेव परूविदा ति ह परूवेदव्वा ? ण, तत्थ अणसंगण सूचिदत्तादो। एत्थ पुण ताए चेव अहियारो ति तिस्से विसे सिदूण परूवणा कीरदे । परमाणुपोग्गलदववग्गणादो दुपदेसियदन्यवग्गणा विसेसहीणा । विसेसो पुण असंखेज्जदिभागो। तस्स को पडिभागो? असंखेज्जा लोगा। तं जहा-असंखेज्जलोगे विरलेदूण परमाणुपोग्गलदव्ववग्गणे समखंडं कादूग दिण्णे एक्केकस्त रूवस्स वगणाविसेसपमाणं पावदि । पुणो एत्थ एगरूवर्धारदं परमाणुवग्गणादो सोहिदे सेसं दुपदेसियवग्गणदव्वं होदि । वेरूवधरिदेसु अवणिदेसु तिपदेसियवग्गणदव्वं होदि । तिण्णिरूवधरिदेसु परमाणुवग्गणदव्वादो अवणिदेसु चदुपदेसियवग्गणदव्वं होदि । एवं विसेसहीणा विसेसहीणा होदूण गच्छंति जाव भागहारस्स अद्धमेतवग्गणाओ उवरि चडिदाओ त्ति । ताधे तदित्थवग्गणा वव्वट्ठदाए दुगुणहीणा होदि । पुणो एदाए असंख्यातवां भाग कम एक कम उत्कृष्ट संख्यात प्रतिभाग है । यहां पर कारण सुगम है। इस प्रकार वर्गणाअल्पबहुत्व समाप्त हुआ। इस प्रकार चौदह अनुयोगद्वारों और वर्गणाके साथ वर्गणाद्रव्यसमुदाहार ___अनयोगद्वार समाप्त हुआ। अब अनन्तरोपनिधा नामका जो अनुयोगद्वार है उसका कथन करते हैं। यथा-अनन्तरोपनिधा दो प्रकारकी है-द्रव्यार्थता और प्रदेशार्थता । शंका-द्रव्यार्थताकी अपेक्षा अनन्तरोपनिधाका वर्गणासमुदाहारमें कथन किया है, इसलिए यहां कथन नहीं करना चाहिए ? समाधान-नहीं, क्योंकि, वहां पर अनुसंगसे उसका सूचन किया है । परन्तु यहां पर उसका ही अधिकार है, इसलिए उसका विशेषरूपसे कथन करते हैं। परमाणु पुद्गल द्रव्यवर्गणासे द्विप्रदेशी द्रव्यवर्गणा विशेष हीन है । विशेषका प्रमाण असंख्यातवां भाग है। उसका प्रतिभाग क्या है? असंख्यात लोक प्रतिभाग है । यथा-असंख्यात लोकोंका विरलन करके उसपर परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणाओंको समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति वर्गणाविशेषका प्रमाण प्राप्त होता है। पुनः यहाँ एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको परमाणु वर्गणा द्रव्यमेंसे घटा देनेपर शेष द्विप्रदेशी वर्गणाद्रव्य होता है । दो अंकोंके प्रति प्राप्त द्रव्यकों घटा देनेपर त्रिप्रदेशी वर्गणाद्रव्य होता है। तीन विरलन अंकों के प्रति प्राप्त द्रव्यको परमाणुवर्गणाद्रव्यमें से घटा देनेपर चतुःप्रदेशी वर्गणाद्रव्य होता है। इस प्रकार भागहारके अर्धभागप्रमाण वर्गगाओंके उत्तरोत्तर प्राप्त होने तक विशेष हीन विशेष हीन होकर जाते हैं । तब वहांकी वर्गणा द्रव्यार्थताकी अपेक्षा द्विगुणी हीन होती है । पुनः इस द्विगुण हीन वर्गणाका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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