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________________ १६८ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड तस्सेव उक्कस्सओ विस्सासुवचओ असंखेज्जगणो। को गणगारो? पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागो। कम्मइयसरीरस्त सम्वम्हि पदेसपिंडे जहण्णओ विस्सासुवचओ अणंतगणो । को गुणगारो? अभवसिद्धिएहि अणंतगणो सिद्धाणमणंतभागो। तस्सेव उक्कस्सओ विस्तासुवचओ असंखेज्जगणो। को गणगारो? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो त्ति । बादरणिगोदवग्गणाए सम्वेगसेडिवग्गणाओ असंखेज्जगणाओ। को गुणगारो ? सेडीए असंखेज्जविभागो। कथमेदं णव्वदे? बादरणिगोदवग्गणाए उक्कस्सियाए सेडीए असंखेज्जविभागमेतो णिगोदाणं त्ति चलियासुत्तादो णवदे । के वि आइरिया: असंखेज्जपदरावलियाओ गणगारो ति भणंति तण्ण घडदे; चुलियासुत्तेण सह विरोहादो। विस्सासुवचयगुणगारं पड़च्च गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो होदि । ण च एसो पहाणो; सेढीए असंखेज्जदिभागस्स पुलवियाणं गुणगारस्स पहाणत्तवलंभादो । बादरणिगोदवग्गणाणमवरि सुहमणिगोदवग्गणाए हेटा तदियधुवसुण्णवग्गणाए सम्वएगसेडिआगासपदेसवग्गणाओ असंखेज्जगुणाओ । को गुणगारो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो। कुदो? उक्कस्सबादरणिगोदवग्गणाए जीवेहितो जहण्णसुहमणिगो. दवग्गणाजीवाणमंगलस्स असंखेज्जदिभागगुणगारुवलंभादो। कुदो एदमवगम्मदे ? गुणकार है । उससे उसीकी उत्कृष्ट विनसोपचय असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । उससे कार्मणशरीरका सब प्रदेशपिण्ड में जधन्य विस्रसोपचय अनन्तगुणा है। गुणकार क्या है ? अभव्यों से अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है । उससे उसीका उत्कृष्ट विस्रसोपचय असख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। बादरनिगोदवर्गणाको सब एकश्रेणिवर्गणायें असंख्यातगुणी है । गुणकार क्या है ? जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-'बादरगिगोदवग्गणाए उक्कस्सियाए सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्तो णिगोदाणं' इस चूलिकासूत्रसे जाना जाता है। कितने ही आचार्य असंख्यात प्रतरावलिप्रमाण गुणकार है ऐसा कहते हैं, परन्तु वह घटित नहीं होता, क्योंकि, चूलिकासूत्रके साथ विरोध आता है । यद्यपि विस्रसोपचयगुणकारको अपेक्षा गुणकार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है, परन्तु यह प्रधान नहीं है, क्योंकि, जगणिके असंख्यातवें भागप्रमाण पूलवियोंके गणकारकी प्रधानता उपलब्ध होती है। बादरनिगोदवर्गणाओंसे आग और सूक्ष्मनिगोदवर्गणाके पूर्व तीसरी ध्रुवशून्यवर्गणाकी सब एकश्रेणिआकाशप्रदेशवर्गणायें असंख्यातगणी हैं। गणकार क्या है ? अङगलके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है, क्योंकि, उत्कृष्ट बादरनिगोदवर्गणाके जीवोंसे जघन्य सूक्ष्मनिगोदवर्गणाके जीवोंका गुणकार अमुलके असंख्यातवें भागप्रमाण पाया जाता है। * आ० प्रती केत्तिआ आइरिया' इति पाठ । ४ म० प्रति पाठोऽयम् । ता० प्रती 'पुढ ( ल ) वीयाणं ' अ० का० प्रत्योः 'पूढवियाणं ' इति पाठ: । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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