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________________ ५, ६, ११६. ) गद्दारे सेाणुयोगद्दारपरूवणा ( १६७ जेण अणंतो जहण्णबादरणिगोदवग्गणा च विस्सासुवचएण जहण्णा तेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो गुणगारो त्ति ण घडदे * ? ण; जहण्णपत्तेयसरीरवग्गणादो उक्कस्सपत्तेयसरीरवग्गणाए अनंतगुणत्तप्प संगादो। ण च एवं गुणगारो वलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो चेव होदि त्ति गुरूवदेसेण अवगदत्तादो । जहण्णादो उक्कस्से विस्सासुवचए गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो त्ति कुदो णव्वदे ? पुव्वृत्तविस्सा सुवचयअप्पा बहुगादो । तं जहा- सव्वत्थोवो ओरालिय सरीरस्स सम्वपदेस पडे जहणओ विस्सासुवचओ । तस्सेव उक्कस्सओ विस्तासुवचओ असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । तदो वेउव्वियसरीरस्स सव्वपदेसपिंडे सव्वजहग्णओ विस्सासुवचओ असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? सेडीए असंखेज्ज - दिभागो | तस्सेव उक्कस्सओ विस्तासुवचओ असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । आहारसरीरस्स सव्वम्हि पदेसपिंडे जहण्णओ विस्सासुवचओ असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? सेडीए असंखेज्जदिभागो । तस्सेव उक्कस्सओ विस्सासुवचओ असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? पलिदोवमस्त असंखंज्जदिभागो । तेजासरीरस्स सव्वहि पदेसपिडे जहण्णओ विस्तासुवचओ अनंतगुणो । को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणतगुणो सिद्धाणमणंतभागो । जघन्य बादर्शनगोदवर्गणा विस्रसोपचयसे जघन्य है, अतः गुणकार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है यह घटित हो जाता है ? समाधान- नहीं, क्योंकि, इस प्रकार जघन्य प्रत्येकशरीरवर्गणासे उत्कृष्ट प्रत्येकशरीय वर्गणा अनन्तगुणे प्राप्त होनेका प्रसंग आता है । परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, गुणकार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण ही है ऐसा गुरुके उपदेशसे जाना जाता है | शंका- जघन्यसे उत्कृष्ट विस्रसोपचयके प्राप्त होने में गुणकार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान- पूर्वोक्त विस्रसोपचय अल्पबहुत्वसे जाना जाता है । यथा - औदारिकशरीर के सब प्रदेश पिण्ड में जघन्य विस्रसोपचय सबसे थोडा है। उससे उसीका उत्कृष्ट विस्र सोपचय असंख्या गुणी | गुणकार क्या है ? पल्यका असंख्यातवां भाग गुणकार है । उससे वैक्रियिकशरीर के सब प्रदेशपिण्ड में सबसे जघन्य विस्रसोपचय असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है? जगश्रेणिका असंख्यातवां भाग गुणकार है। उससे उसीका उत्कृष्ट विस्रसोपचय असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? पत्यका असंख्यातवां भाग गुणकार है । उससे आहारकशरीरका सब प्रदेशपिण्ड में जघन्य विसोपचय असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? जगश्रेणिका असंख्यातवां भाग गुणकार है । उससे उसीका उत्कृष्ट विस्रसोपचय असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? पल्यका असंख्यातवां भाग गुणकार है । उससे तैजसशरीरका सब प्रदेशपिण्डमें जघन्य विस्रसोपचय अनन्तगुणा है । गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण Jain Education International म० प्रतिपाठोऽयम् | प्रतिषु 'त्ति घडदे ' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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