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५, ६, ११६. )
योगद्दारे से साणुयोगद्दारपरूवणा
( १६५
तस्स को पडिभागो ? पढमधुवसुण्णवग्गणाओ । पत्तेयसरीरवग्गणाए उवरि बादरनिगोदवग्गणाए हेट्ठा बिदियधुवसुण्णवग्गणाए सव्व एगसेडिआगासपदेस वग्गणाओ अनंतगुणाओ । को गुणगारो ? अनंता लोगा । तं जहा- एगबादरते उक्काइयवज्जतजीवं ट्ठविय पुणो एदस्स अभवसिद्धिएहि अनंतगुण- सिद्धाणमणंत भागमेत्तओरालियतेजा - कम्मइयपरमाणू सव्वजीवेहि अनंतगुणमेतसगसगविस्सासुवचएहि गुणिय एगट्ठ काढूण गुणगारे ट्ठविदे एगजीवस्स दव्वपमाणं होदि । पुणो एदस्त जीवस्स पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागे गुणगारे द्वविदे उक्कस्सपत्तेयसरीरवग्गणा होदि । पुणो एवं बावरणिगोदजीवं दृविय एदस्स पस्से अभवसिद्धिएहि अनंतगुण- सिद्धाणमणंतमेत्तओरालिय-तेजा-कम्मइयपरमाणू सव्वजीवेहि अनंतगुणमेत्तसगविस्तासुवचएहि गुणिदे एगट्ठीकदे गुणगारभावेण दुविदे एगजीवदव्वं होदि । पुणो एरिसा बादरणिगोदजीवा एगणिगोदसरीरम्हि सव्वजीवरासिस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता अस्थि त्ति काऊण असंखेज्जलोगोवट्टिदसव्व जीवरासिणा पुग्विल्लएगजीवदव्वे गुणिदे एगणिगोदसरीरवव्वं होदि । पुणो तम्मि असंखेज्जलोगेहि एगबादरणिगोदवग्गणसरीरेहि गुणिदे एगपुलवियाए दव्वं होदि । पुणो आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तपुलवियसलागाहि गुणिदे सम्वजहण्णबादरणिगोदवग्गणा होदि । पुणो एत्थ एगवे अवणिदे उक्कस्सधुवसुण्णवग्गणपमाणं होदि । पुणो एदम्हि ध्रुवशून्य वर्गणा प्रतिभाग है । प्रत्येकशरीरवर्गणाके आगे और बादरनिगोदवर्गणा के पूर्व दूसरी ध्रुवशून्यवगणाकी सब एकश्रेणिआकाशप्रदेश वर्गगायें अनन्तगुणी हैं । गुणकार क्या है ? अनन्त लोक गुणकार है । यथा- एक बादर अग्निकायिक पर्याप्त जीवको स्थापित कर पुनः इसके अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण औदारिकशरीर, तैजसशरीर और कार्मणशरीर के परमाणुओंको सब जीवोंसे अनन्तगुणे अपने अपने विस्रसोपचयों से गुणित कर और एकत्र कर गुणकाररूप से स्थापित करने पर एक जीवका द्रव्यप्रमाण होता है । पुनः इसका पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार स्थापित करने पर उत्कृष्ट प्रत्येकशरीरवर्गणा होती है । पुनः एक बादरनिगोद जीवको स्थापित कर इसके पार्श्व में अभव्यों से अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण औदारिकशरीर, तैजसशरीर और कार्मणशरीर परमाणुओंको सब जीवोंसे अनन्तगुणे अपने विस्रसोपचयोंसे गुणित कर और एकत्र कर गुणकाररूपसे स्थापित करनेपर एक जीवका द्रव्य होता है । पुन: इस प्रकार बादर निगोद जीव एक निगोदशरीर में सब जीवराशिके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं ऐसा समझ कर असंख्यात लोक से भाजित सब जीवराशिसे पहले के एक जीवद्रव्यके गुणित करने पर एक निगोदशरीरका द्रव्य होता है । पुनः उसे असंख्यात लोकप्रमाण एक बादरनिगोदवर्गणाशरीरोंसे गुणित करने पर एक पुलविका द्रव्य होता है । पुनः आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण पुलविशलाकाओंसे गुणित करने पर सबसे जघन्य बादरनिगोदवर्गणा होती है । पुनः इसमें से एक अंकके कम कर देनेपर उत्कृष्ट ध्रुवशून्य वर्गणाका प्रमाण होता है । पुनः इसमें उत्कृष्ट प्रत्येकशरीरवर्गणाका भाग देने पर ता० प्रती 'लोगे वड्ढि सव्व - अ० का० प्रत्योः ' - लोगोवद्विदे सव्व -' इति पाठ: 1
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