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________________ १६४ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ६, ११६ अणंतगुणाओ। कुदो ? उवरि ट्रविदचत्तारिगणगारेहितो हेवा ट्रविदभागहारस्स अणंतगुणस्स आहारहेटिमअगहणदव्ववग्गणायामप्पायणटुं जहण्णपरित्ताणंतस्स टुविदगुणगारादो अणंतगुणहीणत्तवलंभादो। कुदो एवं णव्वदे ? गुरूवदेसादो । तेजइयस्स हेट्ठा आहारदव्ववग्गणाए उवरि बिदियअगहणदव्ववग्गणाओ अणंतगुणाओ। तेजइयस्स उवरि भासावग्गणाए हेट्ठा तदियअगहणदव्यवग्गणाए सव्वएगसेडिवग्गणाओ अणंतगणाओ। भासावग्गणाए उवरि मणस्स हेटा च उत्थअगहणदवववग्गणाए सव्वएग. सेडिवग्गणाओ अणंतगुणाओ। मणस्स उवरि कम्मइयस्स हेट्ठा पंचमअगहणदव्ववग्गणाए सव्वएगसेडिदव्ववग्गणाओ अणंतगणाओ। गणगारो सव्वत्थ अभवसिद्धिएहि अणंतगणो सिद्धाणंतिमभागमेत्तो। पुणो धुवक्खंधदव्ववग्गणाए सव्वएगसे डिवग्गणाओ अणंतगुणाओ। को गुणगारो ? सव्वजोवेहि अणंतगणो। तस्स को पडिभागो ? पंचमअगहणवग्गणाओ । अचित्तअर्धवखंधदव्ववग्गणाए सव्वएगसेडिवग्गणाओ अणंतगुणाओ। को गुणगारो ? सव्वजीवेहि अणंतगणो । सांतरणिरंतरवग्गणाए उवरि पत्तेयसरीरवग्गणाए हेट्ठा पढमधुवसुण्णवग्गणाए सव्वएगसेडिआगासपदेसवग्गणाओ अणंतगुणाओ। को गुणगारो ? सव्वजीवेहि अणंतगुणो । पत्तेयसरीरवग्गणाए सव्वएगसेडिवग्गणाओ असंखेज्जगुणाओ। को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। द्रव्यवर्गणायें अनन्तगुणी हैं, क्योंकि, आगे स्थापित किये गये चार गुणकारोंसे पूर्व में स्थापित किया गया अनन्तगुणा भागहार आहारवर्गणासे पूर्व अग्रहणद्रव्यवर्गणाके आयामके उत्पन्न करने के लिए जघन्य परीतानन्तके स्थापित किये गये गुणकार से अनन्तगुणा हीन उपलब्ध होता है। शंका-- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-- गुरुके उपदेशसे जाना जाता है । तेजसशरीर से पूर्व और आहारद्रव्यवगंणाके आगे दूसरी अग्रहणद्रव्यवर्गणायें अनन्तगणी हैं। तैजसशरीरसे आगे और भाषावर्गणाके पूर्व तीसरी अग्रहणद्रव्यवर्गणाकी सब एकश्रेणिवर्गणायें अनन्तगुणी हैं। भाषावर्गणासे आगे और मनोवर्गणासे पूर्व चौथी अग्रहणद्रव्यवर्गणाकी सब एकश्रेणिवर्गणायें अनन्तगुणी हैं। मनोवर्गणाके आगे और कार्मणवर्गणाके पूर्व पांचवी अग्रहणद्रव्यवर्गणाकी सब एकश्रेणिद्रव्यवर्गणायें अनन्तगुणी हैं। गुणकार सर्वत्र अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण है। पुनः ध्रुवस्कन्धद्रव्यवर्गणाकी सब एकश्रेणिवर्गणायें अनन्त गुणी हैं। गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है। उसका प्रतिभाग क्या है ? पांचवीं अग्रहणवर्गणायें प्रतिभाग है। अचित्तअध्रुवस्कन्धद्रव्यवर्गणाकी सब एकश्रेणिवर्गणायें अनन्तगुणी हैं। गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गणकार है। सान्तर-निरन्तरवर्गणाके आगे और प्रत्येकशरीरवर्गणाके पूर्व प्रथम ध्रुवशन्यवर्गणाकी सब एकश्रेणिआकाशप्रदेशवर्गणायें अनन्स गुणी हैं। गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है। प्रत्येकशरीरवर्गणाकी सब एकश्रेणिवर्गणायें असंख्यातगुणी हैं। गणकार क्या है ? पल्यका असंख्यातवां भाग गुणकार है। उसका प्रतिभाग क्या है ? प्रथम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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