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छक्खंडागमे वग्गणा - खंड
सुगमं ।
सत्थाणेण भेदसंघादेण ॥ ११० ॥
परमाणुवग्गणमादि काढूण जाव सांतरणिरंतर उक्कस्वग्गणे ति ताव एदासि वग्गणाणं समुदयसमागमेन पत्तेयसरीरवग्गणा ण समुप्पज्जदि । कुदो ? उक्कस्सातरणिरंतरवग्गणाण सरूवं मोत्तूण रूवाहियादिउवरिमवग्गणसरूवेण परिणमणसत्तीए अभावादो । आहार-तेजा- कम्मइयपरमाणुपोग्गल + वखंधेसु जोग कसायवसेण पत्तेयवग्गणाए बंधमागदेसु अण्णापत्तेयसरीरवग्गणा उप्पज्जदि त्ति हेट्ठिल्लाणं दव्वाणं संघादेण पत्तेयसरीरवग्गणाए उत्पत्ती किष्ण भण्णदे ? ण, पत्तेयसरीरवग्गणसमागमेण विणा द्विमवग्गणाणं चेव समुदयसमागमेण समुत्पज्जमाणपत्तेयसरीरवग्गणाणुवलंभादो । किं च जोगवसेण एगबंधणबद्धओरालिय-तेजा-कम्मइयपरमाणुपोग्गलक्खंधा अनंतात विस्सासुवचएहि उवचिदा । ण ते सव्वे सांतरणिरंतरादिहेट्ठिमवग्गणासु कत्थ विसरिसधणिया होंति; पत्तेयवग्गणाए असंखेज्जदिभागत्तादो । ण ते पत्तेयसरी रजहण्णवग्गणाए सह सरिसा होंति; तदसंखे ० भागत्तादो। ण ते पुध वग्गणासण्णं लहंति; जीवादो पुधभूदकाले तेसिमेगबंधाभावादो । तम्हा हेट्ठिल्लीणं दव्वाण यह सूत्र सुगम है ।
स्वस्थानकी अपेक्षा भेद-संघातसे होती है ।। ११० ।।
परमाणुवर्गणासे लेकर सान्तरनिरन्तर उत्कृष्ट वर्गणा तक इन वर्गणाओंके समुदयसमागमसे प्रत्येकशरीरवर्गणा नहीं उत्पन्न होती है, क्योंकि, उत्कृष्ट सांतर निरन्तरवर्गणाओंका अपने स्वरूपको छोड़कर एक अधिक आदि उपरिम वर्गणारूपसे परिणमन करनेकी शक्तिका अभाव है ।
( ५, ६, ११०
शंका- आहारद्रव्यवर्गणा, तैजसशरीरद्रव्यवगंणा और कार्मणशरीरद्रव्यवर्गगाके पुद्गल - स्कन्धों योग और कषायके वशसे प्रत्येकवर्गणारूपसे बन्धको प्राप्त होनेपर उनसे अन्य प्रत्येक शरीरवर्गणाकी उत्पत्ति होती है, अतः नीचेके द्रव्योंके संघातसे प्रत्येक शरीरवर्गणाकी उत्पत्ति क्यों नहीं कही जातीं ?
समाधान- नहीं, क्योंकि प्रत्येकशरीरवर्गणाके समागमके बिना केवल नीचेको वर्गणाओं के समुदय समागम से उत्पन्न होनेवाली प्रत्येकरीरवर्गणायें नहीं उपलब्ध होती । दूसरे, योग के वशसे एकबन्धनबद्ध औदारिक, तेजस और कार्मण परमाणु पुद्गलस्कन्ध अनन्तानन्त विस्रस्रोपचयोंसे उपचित होते हैं । परन्तु वे सब सान्तरनिरन्तर आदि नीचेकी वर्गणाओं में कही भी सदृशधनवाले नहीं होते, क्योंकि, वे प्रत्येकवर्गणाके असख्यातवें भागप्रमाण होते हैं । वे प्रत्येकशरीर जघन्य वर्गणाके सदृश भी नहीं होते, क्योंकि, वे उसके असंख्यातवें भागप्रमाण होते हैं । वे अलग रूपसे वर्गणासंज्ञाको भी नहीं प्राप्त होते, क्योंकि, जीवसे अलग होने के काल में उनका
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6 ता० प्रतौ ण ( स ) मुप्पज्जदि अ० आ० का० प्रतिषु 'ण मुप्पज्जदि' इति पाठ: । प्रती ' -कम्मइयपोग्गल' इति पाठ: : म० प्रतिपाठोऽयम् । प्रतिषु 'बंधमागदेसु अण्णपत्ते यसरी वगण ए इति पाठ: ।
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