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________________ ९८) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं ( ५. ६. ९३. एवमेगेगुत्तरकमेण ढाणसमयाविरोहेण अणंताणंतकम्म-णोकम्मपरमाणुपोग्गलेहि जडिदसव्वजीवपदेसा जीवा पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता वड्ढावेदव्वा । एवं वड्डाविय पुणो एत्थतणअणंतजीवाणमोरालिय-तेजा-कम्मइयसरीराणं छ पुंजा कमेण वड्डावेदव्या जावप्पणो सव्वुक्कसपमाणं पत्ता त्ति । एदिस्से चरिमसमयखीणकसायस्स उक्कस्सबादरणिगोदवग्गणाए को सामी ? जीवो गणिदकम्मसियो सवक्कस्ससरीरोगाहणाए वट्टमाणो चरिमसमयखीणकसाओ सामी। एत्थ उक्कस्तवग्गणाए वि आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताओ चेव पुलवियाओ। असंखेज्जलोगमेत्ताओ णस्थि । कुदो? साभावियादो। कत्थ पुण असंखेज्जलोगमेत्तपुलवियाओ? मूलय महामच्छथहल्लयादिसु। एक्क्क पुलवियाए असंखेज्जलोगमेत्ताणि* णिगोदसरीराणि एक्केक्कणिगोदसरीरे अणंताणंता णिगोदजीवा अस्थि । पुणो तेसु जीवेसु आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ता चेव गणिदकम्मंसिया। अवसेसा पुण सव्वे गुणिदघोलमाणा चेव । एवं वढिदूणच्छिद खीणकसायचरिमसमए वड्ढी पत्थि । कुदो? तत्थतणजीवाणं तेसिमोरालिय-तेजा-कम्मइयसरीराणं च सव्वुक्कस्सभाववलंभादो। एसा खीणकसायस्स चरिमसमए वट्टमाणस्स उक्कस्सबादरणिगोदवग्गणा खीणहुए अनन्तानन्त कर्म और नोकर्म परमाणु पुद्गलोंसे व्याप्त सब जीव प्रदेश हैं जिनके ऐसे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण जीव बढाने चाहिए। इस प्रकार बढाकर पुन: यहांके अनन्त जीवोंके औदारिक, तेजस और कार्मण शरीरोंके क्रमसे छह पुञ्च अपने सर्वोत्कृष्ट प्रमाणको प्राप्त होने तक बढाने चाहिए। शंका -अन्तिम समयवर्ती क्षीणकषाय जीवके यह जो उत्कृष्ट बादर निगोद वर्गणा होती है इसका स्वामी कौन जीव है ? ___समाधान- जो गुणित कर्माशिक है और सबसे उत्कृष्ट शरीर अवगाहनासे युक्त है ऐसा अन्तिम समयवर्ती क्षीणकषाय जीव उक्त उत्कृष्ट वर्गणाका स्वामी है। यहाँ पर उत्कृष्ट वर्गणाकी पुलवियाँ आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होती हैं, असंख्यात लोकप्रमाण नहीं होती; क्योंकि, ऐसा स्वभाव है। शंका-असंख्यात लोकप्रमाण पुलवियाँ कहाँ पर होती है ? समाधान-मूली, महामत्स्य, थहर और लतादिकायें होती हैं। एक एक पुलवीमें असंख्यात लोकप्रमाण निगोदशरीर होते हैं और एक एक निगोद शरीरमें अनन्तानन्त निगोद जीव होते हैं। परन्तु उन जीवोंमें आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण जीव गुणितकांशिक होते हैं तथा बाकीके सब जीव गुणितघोलमान होते हैं। ___ इस प्रकार बढाकर स्थित हुए क्षीणकषायके अन्तिम समयमें और वृद्धि नहीं होती; क्योंकि, वहाँ स्थित हुए जीवोंके औदारिक, तैजस और कार्मणशरीर सर्वोत्कृष्ट भावको प्राप्त हो गये हैं। यह अन्तिम समयवर्ती क्षोणकषायके उत्कृष्ट बादर निगोद वर्गणा क्षीणकषायके साथ ता० प्रती 'जणिदसव्वजीवपदेसा' इति पाठः। 4 अ० आ० का० प्रतिष 'कथं पुण ' इति पाठः। ता. प्रतौ 'एक्केक्कपुलवियासु संखेज्जलोगमेत्ताणि ' इति पाठ.1 ता. का० प्रत्योः 'वडिदूण ट्रिद-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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