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________________ छक्खंडागमे वग्गणा-खंड समाणवे उब्वियादिछप्पुंजदव्यं । समतपुढविचरिरमसमयणेरइयं घेत्तूण पुणो अपणो ऊगीकददव्वमेत्थतणछप्पुंजेसु पुध पुध वड्ढावेदव्वं । संपहि अण्णण जीवेण वे उब्वियसरीरविस्सासुवचयपुंजे परमाणुत्तरे कदे सजोगिपढमसमय उक्कस्लदव्वस्सुवरि परमाणुत्तरं होदूण अण्णमपुणरुत्तट्ठाणमुप्पज्जदि । एवमेगेगपरमाणुत्तरकमेण सधजीवेहि अणंतगणमेत्ता विस्सासुवचयपरमाण वेउविवयसरीरविस्ससुवचयपुंजम्मि जाव वड्ढिदा त्ति । तदो अण्गो जीवो वेउविवयसरीरं परमाणुत्तरं कादूण तस्सेव विस्सासुवचयपुंज सव्वजोवेहि अणंतगुणमेतविस्सासुवचएण अब्भहियं काऊण दिदो। ताधे पुवप्पण्णट्टाणादो संपहियद्वाणं परमाणुत्तरं होदि । कारणं सुगमं । अणेण विहाणेण वेउवियसरीरदोपुंजा वड्ढावेदव्वा जावप्पणो उक्कस्सदत्वपमाणं पत्ता त्ति । ___तदो अण्णो जीवो वेउब्बियसरीरं सगविस्सासोवचएण सह उक्कस्सं करिय पुणो तेजासरीरविस्ससुवचयपुंजं परमाणुत्तर कादर्णाच्छदो । ताधे अण्णमपुणरुत्तट्ठाणं होदि। एवं परमाणुत्तरकमेग ताव वड्ढावेदव्वं जाव सव्वजीवेहि अगंतगुणमेत्ता विस्सासुवचयपरमाणू तेजासरीरविस्ससुवचयपुंजम्मि वडिदा ति । तदो अण्णो जीवो पुणिरुद्ध. तेजासरीरं परमाणुत्तरं कादश तस्सेव विस्ससोवचयपुंज सब्रजोवेहि अणंतगुणमेत्तविस्ससोवचयेण अब्भहियं कादूणच्छिदो।ताधे तं ठाणमणंतरहेट्ठिमट्ठाणादो परमाणुत्तरं सातवीं पृथ्वीके अन्तिम समयवर्ती नारकीको ग्रहण करके पुनः अपना अपना कम किया गया द्रव्य यहाँके छह पुञ्जोंमें पृथक्-पृथक् बढाना चाहिए । ___ अब अन्य जीवके द्वारा वैक्रियिकशरीरके विस्रसोपचय पुजमें एक परमाणु अधिक करनेपर सयोगी जिनके प्रथम समयके उत्कृष्ट द्रव्यके ऊपर एक परमाणु अधिक होकर अन्य अपुनरुक्त स्थान उत्पन्न होता है। इस प्रकार एक एक परमाणु अधिकके क्रमसे वैक्रियिकशरीरके विस्रसोपचय पुञ्जमें सब जीवोंसे अनन्तगुणे विस्रसोपचय परमाणु होने तक बढाने चाहिए। अनन्तर वैक्रियिकशरीरको एक परमाणु अधिक करके तथा उसीके विस्रसोपचय पुञ्जको सब जीवोंसे अनन्तगुणे विस्रसोपचय परमाणुओंसे अधिक करके स्थित हुए अन्य जीवके उस समय पहले उत्पन्न हुए स्थानसे साम्प्रतिक स्थान एक परमाणु अधिक होता है। कारण सुगम है। इस प्रकार उक्त विधिसे अपने उत्कृष्ट द्रव्यके प्रमाणको प्राप्त होने तक वैकियिकशरीरके दो पुञ्ज बढाने चाहिए । ___ अनन्तर अपने विस्रसोपचयके साथ वैक्रियिकशरीरके द्रव्यको उत्कृष्ट करके पुन: तैजसशरीरके विस्रसोपचय पुंजको एक परमाणु अधिक करके स्थित हुए एक अन्य जीवके उस समय अन्य अपुनरुक्त स्थान उत्पन्न होता है। इस प्रकार तेजसशरीरके विस्रसोपचय पुञ्जमें सब जीवोंसे अनन्तगुणे विस्र सोपचय परमाणुओंकी वृद्धि होने तक एक एक परमाणुकी उत्तरोत्तर वृद्धि करते जाना चाहिए । अनन्तर पूर्व में विवक्षित हुए तैजसशरीरको एक परमाणु अधिक करके तथा उसीके विस्रसोपचय पुञ्जको सब जीवोंसे अनन्तगुणे विस्रसोपचय परमाणुओंसे अधिक करके स्थित हुए जीवके प्राप्त हुआ यह स्थान अनन्तर पिछले स्थानसे एक परमाणु अधिक होता है । इस प्रकार तैजसशरीरके दो पुञ्जोंमें तब तक वृद्धि करते जाना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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