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________________ छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं पुवुत्तपत्तेयसरीर वग्गणाए सह सरिसी होदि । संपहि एत्थ वड्ढी णस्थि; पत्तसव्वक्कस्सभावादो। संपहि अजोगिदुचरिमचरिमसमए लब्भिस्सामो। तं जहा- गुणिद कम्मंसिओ सत्तमाए पुढवीए तेजा-कम्मइयसरीरवग्गणमक्कस्त करेमाणो दुचरिमगुणसेडिदवेण कम्मइय-तेजोरालियसरीराणं दुचारमगोपुच्छाहि य ऊणमुक्कस्सपत्तेयसरीरवग्गणं काढूण अजोगिदुचरिमसमए अच्छि दस्त चरिमस प्रयवग्गणाए सह दुचरिमसमयवग्गणा सरिसी होदि । पुणो चरिमसमय अजोगिवग्गणं मोत्तण दुचरिमसमयअजोगिखवगपत्तेयसरीरवग्गणा पुत्वविहाणेण वढावेदव्वा जावप्पणो उक्कस्सपत्तेयसरीरवगणपमाणं पत्ता ति । एवं तिचरिम-चदुचरिमादिसमएसु ओरालिय-तेजा-कम्मइयसरीराणं पुध पुध विस्ससुवचयपरमाण च वड्डाविय ओदारेदव्वं जाव सजोगिपढमसमओ त्ति । संपहि एत्तो हेट्ठा ओदारेदं ण सक्कदे; खीणकसायचरिमसमए बादरणिगोदवग्गणाए उवलंभादो। तेण सत्तमाए पृढवीए चरिमसमयणेरइयदवमस्सिदण वडि भणिस्सामो। तं जहा-- गुणिदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण सत्तमाए पुढवीएणेरइयचरिमसमए वट्टमाणस्स तेजाकम्मइयसरीराणं चत्तारिपुंजेहि पढमसनयसजोगिस्स तेजा कम्मइयसरीराणं चत्तारि पुंजा विसेसहीणा।पढमसमयसजोगिस्सओरालिय सरीरपरमाणुपोग्गलपुंजादो रइय स्थित हुआ। उसके प्रत्येक शरीरकी वर्गणा पूर्वोक्त प्रत्येकशरीरको वर्गणाके समान होती है । अब यहाँ पर वृद्धि नहीं है; क्योंकि, इसने सर्वोत्कृष्टपनेको प्राप्त कर लिया है। अब अयोगीके द्विचरम समयका आश्रय करके कथन करते हैं । यथा- जिस गुणितकर्माशिक जीवने सातवीं पृथिवीमें तैजसशरीर और कार्मणशरीरकी वर्गणाको उत्कृष्ट किया है और जो द्विचरम गुणश्रेणिद्रव्यसे तथा कार्मण, तैजस, और औदारिकशरीरकी द्विचरम गोपुच्छासे न्यून उत्कृष्ट प्रत्येकशरीर वर्गणीको करके अयोगीके द्विचरम समयमें स्थित है उसके अन्तिम समयकी वर्गणाके साथ, द्विचरम समयकी वगंणा समान होती है। पून: अयोगीके अन्तिम समयकी वर्गणाको छोडकर अयोगीके द्विचरम समयकी क्षपक प्रत्येकशरीर वर्गणा अपने उत्कृष्ट प्रत्येकशरीर वर्गणाके प्रमाणको प्राप्त होने तक पूर्वोक्त विधिसे बढानी चाहिये। इस प्रकार त्रिचरम, चतःचरम आदि समयोंमें औदारिक, तैजस और कार्मण शरीर तथा उनके पृथक्-पृथक् विस्रसोपचय परमाणु बढाकर उतारते हुये सयोगी गुणस्थानके प्रथम समय तक ले जाना चाहिये । अब इससे पीछे उतार कर ले जाना संभव नहीं है। क्योंकि क्षीणकषायके अन्तिम समयमें बादर निगोद वर्गणा उपलब्ध होती है, इसलिये सातवीं पृथिवीके अन्तिम समयवर्ती नारकीके द्रव्यका आश्रय करके वद्धिका कथन करते हैं। यथा-- गुणित कर्माशिक विधिसे आकर सातवीं पृथ्वीमें अन्तिम समयमें विद्यमान नारकीके तैजसशरीर और कार्मणशरीरके चार पुञ्जोंकी अपेक्षा प्रथम समयवर्ती सयोगी जिनके तैजसशरीर और कार्मणशरीरके चार पुज विशेष हीन होते हैं। प्रथम समयवर्ती सयोगी *ता. प्रतो ' पुववृत्तसरीर-' इति पाठः। ता० अ० प्रत्योः '-कम्मइयवग्गणमुक्कस्सं इति पाठ: 1 *अ० प्रतो'-दवेगग' इति पाठ.168 ता० प्रतौ 'सजोगिचरिमपढम-' इति पाठ: आ० प्रतौ 'तेण सत्तमाए पुढवीए रइयचरिम-, दति पाठाता० प्रती '-सजोगिस्स तेजा-कम्मइय-ओरालिय-, इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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