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छक्खंडागमे वगणा-चंड
( ५, ४, २४. व्व इरियावहकम्मेण अप्पाणं बंधमाणो जिणो ण देवो ति? ण, बद्धं पि तण्ण बद्धं चेव, बिदियसमए चेव णिज्जरुवलंभादो पुणो पुव्वबद्धकम्माणं पि सगसहकारिकारणघादिकम्माभावेण अण्णसरीरसंठाणसंघडणादीणं णिवत्तणादिसत्तीए अमावादो। कम्मेहि पुटुस्स कधं देवत्तमिदि चे-ण, पुढें पि तंण पुढं चेव* ; इरियावहबंधस्स संतसहावेण जिणिदम्मि अवट्ठाणाभावादो। पुव्वसंतस्स पासो ण प्पासो, पदमाणत्तादो । जदि जिणसंतकम्म पदमाणं तो अक्कमेण किण्ण णिवददे? ण, दोत्तडीणं व बज्शकम्मक्खंधपदणमवेक्खिय णिवदंताणमक्कमेण पदणविरोहादो । उदिण्ण-पंचिदिय-तस-बादर-पज्जत्तगोदाउकम्मो कधं जिणो देवो? ण, उदिण्णमपि तण्ण उदिण्णं दद्धगोहूमरासि व्व पत्तणिब्बीयभावत्तादो। इरियावहकम्मस्स लक्खणे भण्णमाणे सेसकम्माणं वावारो किमिदि परूविज्जदे? ण, इरियावहकम्मसहचरिदसेसकम्माणं पि इरियावहत्तसिद्धीए तल्लक्खणस्स वि इरियावहलक्खणत्तुववत्तीदो। असादवेदणीयं वेदयमाणो जिणो कधं णिरामओ
रेशमके कीडे के समान ईर्यापथ कर्मसे अपने को बांधनेवाले जिन भगवान् देव नहीं हो सकते, ऐसा कहना ठीक नहीं है; क्योंकि, बद्ध होकर भी वह बद्ध नहीं ही है, क्योंकि, दूसरे समयमें ही उसकी निर्जरा देखी जाती है, और पहलेके बांधे हुए कर्मों में भी उनके सहकारी कारण घातिया कर्मोंका अभाव हो जानेसे अन्य शरीर, संस्थान और संहनन आदिको उत्पन्न करनेकी शक्ति नहीं पाई जाती।
जो कर्मोंसे स्पृष्ट है वह देव कैसे हो सकता है, ऐसा कहना भी ठीक नहीं है; क्योंकि, स्पृष्ट होकर भी वह स्पृष्ट नहीं ही है, कारण कि ईर्यापथबन्धका सत्त्वरूपसे जिनेन्द्र भगवान्के अवस्थान नहीं पाया जाता और पहलेके सत्कर्मके स्पर्शको स्पर्श मानना ठीक नहीं है. क्योंकि, उनका पतन हो रहा है।।
शंका- यदि जिन भगवान्के सत्कर्मका पतन हो रहा है, तो उसका युगपत् पतन क्यों नहीं होता?
समाधान- नहीं, क्योंकि, पुष्ट नदियोंके समान बँधे हुए कर्मस्कन्धोंके पतनको देखते हुए पतनको प्राप्त होनेवाले उनका अक्रमसे पतन मानने में विरोध आता है।
जिनेन्द्र देवके पञ्चेन्द्रिय, त्रस, बादर, पर्याप्त, गोत्र और आयु कर्मकी उदय-उदीरणा पाई जाती है, इसलिये वे देव कैसे हो सकते हैं, ऐसा कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, उनका कर्म उदीर्ण होकर भी उदीर्ण नहीं है, क्योंकि, वह दग्ध गेहूं के समान निर्बीजभावको प्राप्त हो गया है।
शंका- यापथ कर्मका लक्षण कहते समय शेष कर्मोके व्यापारका कथन क्यों किया जा रहा है ?
___ समाधान-नहीं, क्योंकि, ईपिथके साथ रहनेवाले शेष कर्मों में भी यापथत्व सिद्ध हैं ।
®ताप्रतौ 'पुणो' इत्येतत्पदं नोपलभ्यते । ति ( पुळं ति ) तण्ण घट्ट (पुट्ठ) चेव' इति पाठः। इति पाठः । ॐ आ-ताप्रत्योः 'दद्धणहम ' इति पाठः।
*ताप्रतौ ‘कम्मेहि फुट्टस्स (पुटुस्स) चे ण, घट्टे *ताप्रतौ 'पुवसंतस्स पासो पदमाणत्तादो' ।।
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