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________________ ( ४९ ५, ४, २४. ) कम्माणुओगद्दारे इरियावहकम्मपरूवणा उप्पण्णबिदियादिसमयागमवट्ठाणववएसुवलंभादो। ण उप्पत्तिसमओ अवट्ठाणं होदि, उप्पत्तीए अभावप्पसंगादो। ण च अणुप्पण्णस्स अवट्ठाणमत्थि, अण्णत्थ तहाणुवलंभादो। ण च उप्पत्तिअवट्ठाणाणमेयत्तं, पुवुत्तरकालभावियाणमेयत्तविरोहादो। ___ अढण्णं कम्माणं समयपबद्धपदेसेहितो ईरियावहसमयपबद्धस्स पदेसा संख्खेज्जगुणा होंति, सादं मोत्तूण अण्णेसि बंधाभावो। तेण ढुक्कमाणकम्मक्खंधेहि थूलमिदि बादरं भणिदं। अणुभागेण बादरं ति किण्ण घेप्पदे? ण, कसायाभावेण अणुभागबंधाभावादोला कम्मइयक्खंधाणं कम्मभावेण परिणमणकाले चेव सव्वजीवेहि अणंतगुणण अणुभागेण होदव्वं, अण्णहा कम्मभावपरिणामाणुववत्तीदो त्ति? ण एस दोसो, जहण्णाणुभागट्ठाणस्स जहणफद्दयादो अणंतगुणहीणाणुभागेण कम्मक्खंधो बंधमागच्छदि त्ति कादूण अणुभागबंधो णथि ति भण्णदे। तेग बंधो एगसमयटिदिणिवत्तयअणुभागसहियो अस्थि चेवे त्ति घेत्तव्यो। तेणेव कारणेण दिदि-अणुभागोह इरियावहकम्ममप्पमिदि भणिदं । इरियावहकम्मक्खंधा कक्खडादिगुणेण अवोहा मउअफासगुणेण सहिया चेव समाधान-नहीं, क्योंकि, उत्पन्न होने के पश्चात् द्वितीयादि समयोंकी अवस्थान संज्ञा पायी जाती है। उत्पत्तिके समय को ही अवस्थान नहीं कहा जा सकता, क्योंकि, ऐसा माननेसे उत्पत्तिके अभावका प्रसंग प्राप्त होता है। यदि कहा जाय कि अनुत्पन्न वस्तुका अवस्थान बन जायगा, सो भी बात नहीं है; क्योंकि, अन्यत्र ऐसा देखा नहीं जाता। यदि उत्पत्ति और अवस्थानको एक कहा जाय सो भी बात नहीं है, क्योंकि, ये दोनों पूर्वोत्तर कालभावी हैं, इसलिये इन्हें एक मानने में विरोध आता हैं । यही कारण है कि यहां ईर्यापथ कर्मके अवस्थानका अभाव कहा है। __ आठों कर्मोंके समयप्रबद्धप्रदेशोंसे ईर्यापथकर्म के समयप्रबद्धप्रदेश संख्यातगुण होते हैं, क्योंकि, यहां सातावेदनीयके सिवाय अन्य कर्मोका बन्ध नहीं होता। इसलिये ईयर्यापथरूपसे जो कर्मस्कन्ध आते हैं वे स्थूल हैं, अतः उन्हें बादर कहा है। शंका-ईयोपथकर्म अनुभागकी अपेक्षा बादर होते हैं, ऐसा क्यों नहीं ग्रहण किया जाता है? समाधान- नहीं, क्योंकि, यहां कषायका अभाव होनेसे अनुभागबन्ध नहीं पाया जाता। शंका- कार्मणस्कन्धोंका कर्मरूपसे परिणमन करने के समयमें ही सब जीवोंसे अनन्तगुणा अनुभाग होना चाहिये, क्योंकि, अन्यथा उनका कर्मरूपसे परिणमन करना नहीं बन सकता? समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, यहांपर जघन्य अनुभागस्थानके जघन्य स्पर्धकसे अनन्तगुणे हीन अनुभागसे युक्त कर्मस्कन्ध बन्धको प्राप्त होते हैं; ऐसा समझकर अनुभागबन्ध नहीं है, ऐसा कहा है । इसलिये एक समयकी स्थितिका निवर्तक ईर्यापथकर्मबन्ध अनुभागसहित है ही, ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिये । और इसी कारणसे ईर्यापथ कर्म स्थिति और अनुभागकी अपेक्षा 'अल्प' है ऐसा यहां कहा है। __ ईर्यापथ कर्मस्कन्ध कर्कश आदि गुणोंसे रहित हैं व मृदु स्पर्शगुणसे युक्त होकर ही बन्धको ताप्रतौ '-बंधभावदो' इति पाठः । ॐ प्रतिषु 'अवोढा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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