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४६ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
( ५, ४, २१. वा कम्मस्स समोदाणदाए भेदेण गहणं पवत्तदि, ण अण्णहा इदि भणंतेण सुत्तकारण णवमादिकम्माभावो परूविदो होदि। कम्मइयवग्गणखंधा अकम्मभावेण दिदा मिच्छत्तादिकारणेहि परिणामंतरेण अणंतरिदा तदणंतरसमए चेव अट्ठकम्मसरूवेण सत्तकम्मसरूवेण छकम्मसरूवेण वा होदूग गहणमागच्छंतीति जाणाविदं ति भावत्थो। एवं सव्वं पि कम्मं बंधोदयसंतभेदभिण्णं समोदाणकम्मं णाम ।
जं तमाधाकम्मं णाम ।। २१ ।। तस्स अत्थविवरणं कस्सामो
तं ओद्दावण-विद्दावण-परिदावण-आरंभकदणिप्फण्णं तं सव्वं आधाकम्म णाम ।। २२॥
कदं णाम कज्जतं,* कृतशब्दस्य कर्मवाचिनः अंतर्भावितभावस्य ग्रहणात्। कृत. शब्दो निमित्तार्थे वा वर्तनीयः । जीवस्य उपद्रवणं ओद्दावणं णाम। अंगच्छेदनादिव्यापारः विद्दावणं णाम । संतापजननं परिदावणं णाम।प्राणि-प्राणवियोजनं आरंभो णाम। ओहावण-विद्दावण-परिदावण-आरंभकज्जभावेण णिप्फण्णमोरालियसरीरं तं सव्वमाधाकम्मं णाम। जम्हि सरीरे द्विदाणं जीवाणं ओद्दावण-विद्दावण-परिदावण-आरंभा
भेदरूपसे ग्रहण होता है, अन्य प्रकारसे नहीं; इस प्रकार प्रतिपादन करनेवाले सूत्रकारने नौवां आदि कर्म नहीं है, यह प्ररूपित कर दिया है। जो कार्मण वर्गणास्कन्ध अकर्मरूपसे स्थित हैं वे मिथ्यात्व आदि कारणोंका निमित्त पाकर अन्य परिणामको न प्राप्त होकर अनन्त र समयमें ही आठ कर्मरूपसे, सात कर्मरूपसे या छह कर्मरूपसे परिणत होकर गृहीत होते हैं; यह यहां उक्त कथनका भावार्थ जताया है । यह सभी बन्ध, उदय और सत्ताके भेदसे अनेक प्रकारका कर्म समवदान कर्म है।
अब अधःकर्मका अधिकार है ॥२१॥ .. उसके अर्थका खुलासा करते हैं
वह उपद्रावण, विद्रावण, परितापन और आरम्भ रूप कार्यसे निष्पन्न होता है; वह सब अधःकर्म है ॥२२॥
कृत शब्द कार्यसामान्यका वाची है, क्योंकि, यहां भावगर्भ कर्मवाची कृत शब्दका ग्रहण किया है। अथवा कृत शब्द निमित्त रूप अर्थमें विद्यमान है। जीवका उपद्रव करना ओहावण कहलाता है। अंगछेदन आदि व्यापार करना विद्दावण कहलाता है । सन्ताप उत्पन्न करना परिदावण कहलाता है। और प्राणियोंके प्राणोंका वियोग करना आरम्भ कहलाता है। उपद्रावण, विद्रावण, परितापन और आरम्भ आदि कार्यरूपसे जो उत्पन्न हुआ औदारिक शरीर है यह सब अधःकर्म है। जिस शरीर में स्थित जीवोंके उपद्रावण, विद्रावण, परितापन और आरम्भ अन्यके
0 अ-आप्रत्योः
परिदावण' इति पाठः ।
आ-ताप्रत्योः 'अट्रमभावेण' इति पाठः । * आ-ताप्रत्योः 'कज्जं तं' इति पाठः ।
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