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________________ २२ ) छवखंडागमे वग्गणा-खंड ( ५,३, २२. पविसदि, पोग्गलम्मि ओगाहणधम्माभावादो। भावे वा आगासदव्वस्स अभावो होज्ज, तेण कीरमाणकज्जस्स पोग्गलेणेव कदत्तादो । सुवण्णम्हि पारयस्स पवेसो सरूवपरिच्चागमंतरेण उवलब्भदि त्ति चे-होदु खंधेसु खंधाणं पवेसो, सरुव परिच्चागेण विणा छारच्छाणिमट्टियासु जलादीणं पवेसुवलंभादो । न च परमाणूणमेस क्कमो, सयलथूलकज्जाणमभावप्प संगादो। केसि पि परमाणूणं एगदेसेण फासो, केसि पि सव्वपणा, ते परमाणू हितो थूलकज्जुप्पत्ती ण विरुज्झदि त्ति चे-ण, कम्हि वि कालम्हि सव्वेसु पोग्गलेसु एगपरमाणु म्हि पविट्ठेसु परमाणुमेत्तस्स अवद्वाणप्पसंगादो । होदु चे - ण, तिहुवणजणतणुविणासेण सव्वजीवाणं णिव्वुइप्पसंगादो । एक्कम्हि परमाणुम्हि सव्वो पोग्गलरासी ण पविसदि, किंतु थोवा चेव परमाणू पविसंति त्ति चे ण, थोवपवेसस्स कारणाभावाद । ओगाहणसत्ती बहुआ णत्थि त्ति थोवा चेव पविसंति त्ति चे-ण, आयासं मोत्तून अण्णत्थ ओगाह धम्माभावादो । जदि परमाणुम्हि परमाणूणं पवेसो णत्थि तो असंखेज्जपदेसिए लोगागासे कधमणंताणं पोग्गलाणं नहीं होता, क्योंकि, पुद्गलमें अवगाहन धर्मका अभाव है । और यदि उसमें अवगाहन धर्मका सद्भाव माना भी जाय तो आकाश द्रव्यका अभाव प्राप्त होता है, क्योंकि, उसके द्वारा किये जानेवाले कार्यको पुद्गलने ही कर दिया । यदि कहा जाय कि सुवर्ण में पारदका अपने स्वरूपका त्याग किये बिना ही प्रवेश देखा जाता है, तो इसपर यह कहना है कि स्कन्धों में स्कन्धों का प्रवेश भले ही हो जाय, क्योंकि, स्वरूपका परित्याग किये बिना ही क्षार, छाणि, और मिट्टी में जल आदिकका प्रवेश देखा जाता है । परन्तु परमाणुओं में यह क्रम नहीं पाया जाता, क्योंकि, ऐसा माननेपर समस्त स्थूल कार्योंके अभावका प्रसंग प्राप्त होता है | यदि कहा जाय कि किन्हीं परमाणुओंका एकदेशेन स्पर्श होता है और किन्ही परमाणुओंका सर्वात्मना स्पर्श होता है, इसलिये परमाणुओंसे स्थूल कार्यकी उत्पत्ति होने में कोई विरोध नहीं आता । सो यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, ऐसा माननेपर स्यात् किसी काल में सब पुद्गल एक परमाणुमें प्रविष्ट हो जायेंग तब परमाणुमात्र अवस्थान प्राप्त होगा। यदि कहा जाय कि ऐसा ही हो जाय, सो यह बात भी नहीं है; क्योंकि, तब तीन लोकके जीवोंके शरीरका विनाश हो जानेसे सब जीवोंको मुक्तिका प्रसंग प्राप्त होता है । यदि कहा जाय कि एक परमाणु में सब पुद्गल राशि प्रवेश नहीं करती, किन्तु स्वल्प परमाणु ही प्रवेश करते हैं । सो ऐसा कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, स्वल्प परमाणु ही प्रवेश करते हैं इसका कोई कारण नहीं पाया जाता। यदि कहा जाय कि अधिक अवगाहन शक्ति नहीं पाई जाती, इसलिये स्वल्प परमाण ही प्रवेश करते हैं । सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि, आकाश के सिवाय अन्य द्रव्यमें अवगाहन धर्म नहीं पाया जाता। इसपर कहा जाय कि यदि परमाणुमें परमाणुओंका प्रवेश नहीं होता तो असंख्यप्रदेशी लोकाकाशमें अनन्त पुद्गलोंका अवस्थान कैसे बन सकता है । सो भी कहना Q अप्रतौ ' सुव्वण्णम्हि' इति पाठ: । प्रतिषु मट्टियासजलादीणं' इति पाठः । अप्रतौ 'सव्वष्णासेण तेण ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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