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________________ १४ ) छ खंडागमे वेयणाखंड ( ५, ३, १२. व्वाणमत्थि फासो, सत्त-पमेयत्तादीहि लोगमेत्तखेत्तावद्वाणेण एयत्तदंसणादो । ८ । जीवअधम्मदव्वाणमत्थि फासो । कारणं पुव्वं व वत्तव्वं । ९ । जीव- कालदव्वाणमत्थि फासो । कारणं सुगमं । १० । जोवागासदव्वाणमत्थि फासो । कारणं सुगमं । ११ । पोग्गल धम्मदव्वाणमत्थि फासो । १२ । पोग्गल - अधम्मदव्वाणमत्थि फासो । १३ । पोग्गल - काल aaraft फासो । १४ । पोग्गल - आगासदव्वाणमत्थि फासो । १५ । धम्माधम्मदव्वाणमत्थि फासो । १६ । धम्म - कालदव्वाणमत्थि फासो । १७ । धम्मागासदव्वाणमत्थि फासो । १८ । अधम्म - कालाणमत्थि फासो । १९ । अधम्मागासाणमत्थि फासो । २० । कालागासाणमत्थि फासो । २१ । जीव- पोग्गल-धम्मदव्वाणमत्थि फासो । २२ । जीव- पोग्गल - अधम्मदव्वाणमत्थि फासो । २३ । जीवपोग्गलकालदव्वाणमत्थि फासो । २४ । जीवपोग्गलागासदव्वाणमत्थि फासो । २५ । जीवधम्माधम्मदव्वाणमत्थि फासो । २६ । जीवधम्मकालदव्वाणमत्थि फासो । २७ । जीवधम्मागासदव्वाणमत्थि फासो । २८ । जीवअधम्मकालदव्वाणमत्थि फासो । २९ । जीवअधम्मागासदव्वाणमत्थि फासो । ३० । जीवकालागासदव्वाणमत्थि फासो । ३१ । पोग्गलधम्माधम्मदव्वाणमत्थि फासो । ३२ । पोग्गलधम्मकालदव्वाणमत्थि फासो |३३| पोग्गलधम्मागासदव्वाणमत्थि फासो । ३४ । पोग्गलअधम्मकालदव्वाणमत्थि फासो । ३५ । पोग्गलअधम्मागासदव्वाणमत्थि फासो | ३६ | पोग्गलवालागा सदव्वाणमत्थि फासो । ३७ धम्माधम्मकालदव्वाणमत्थि T सत्त्व व प्रमेयत्व आदि धर्मोकी अपेक्षा और लोकमात्र क्षेत्रके अवस्थानकी अपेक्षा इनका एकत्व देखा जाता है | ८ | जीव और अधर्म द्रव्यका परस्पर में स्पर्श है। कारण पहले के समान कहना चाहिये । ९ । जीव और काल द्रव्यका स्पर्श है। कारण सुगम है । १० । जीव और आकाश द्रव्यका स्पर्श है । कारण सुगम है । ११ । पुद्गल और धर्म द्रव्यका स्पर्श है | १२ | पुद्गल और अधर्म द्रव्यका स्पर्श है । १३ । पुद्गल और काल द्रव्यका स्पर्श है । १४ । पुद्गल और आकाश द्रव्यका स्पर्श है | १५ | धर्म और अधर्म द्रव्यका स्पर्श है । १६ । धर्म और काल द्रव्यका स्पर्श है १७ । धर्म और आकाश द्रव्यका स्पर्श है । १८ अधर्म और काल द्रव्यका स्पर्श है । १९ । अधर्म और आकाश द्रव्यका स्पर्श हैं । २० काल और आकाश द्रव्यका स्पर्श है । २१ । जीव, पुद्गल और धर्म द्रव्यका स्पर्श है । २२ । जीव, पुद्गल और अधर्म द्रव्यका स्पर्श है । २३ । जीव पुद्गल और काल द्रव्यका स्पर्श है । २४ । जीव, पुद्गल और आकाश द्रव्यका स्पर्श है । २५ । जीव, धर्म और अधर्म द्रव्यका स्पर्श है । २६ । जीव, धर्म और काल द्रव्यका स्पर्श है । २७ । जीव, धर्म और आकाश द्रव्यका स्पर्श है । २८ । जीव, अधर्म और काल द्रव्यका स्पर्श है । २९ । जीव, अधर्म और आकाश द्रव्यका स्पर्श है । ३० । जीव, काल और आकाश द्रव्यका स्पर्श है 1 ३१ । पुद्गल, धर्म और अधर्म द्रव्यका स्पर्श है । ३२ । पुद्गल, धर्म और काल द्रव्यका स्पर्श है । ३३ । पुद्गल, धर्म और आकाश द्रव्यका स्पर्श है । ३४ । पुद्गल, अधर्म और काल द्रव्यका स्पर्श है । ३५ । पुद्गल, अधर्म और आकाश द्रव्यका स्पर्श है | ३६ | पुद्गल, काल और आकाश द्रव्यका स्पर्श है । ३७ । धर्म, अधर्म और काल द्रव्यका स्पर्श है । ३८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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