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________________ ३४८ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ५, ८२. मोचनं मोक्षः, मुच्यते अनेनास्मिन्निति वा मोक्षः । सो मोक्खो तिविहोजीवमोक्खो पोग्गलमोक्खो जीव-पोग्गलमोक्खो चेदि । एवं मोक्ख कारणं पि तिविह ति वत्तव्वं । बंधं बंधकारणं बंधपदेस-बद्ध-बज्झमाणजीवे पोग्गले च, मोक्खं मोक्खकारणं मोक्खपदेसमक्क-मुच्चमाणजीव-पोग्गले च तिकालविसए जाणदि त्ति भणिवं होदि । भोगोवभोगोहयहत्थि-मणि-रयणसंपया संपय कारणं च इद्धी गाम तिहुवणगयसयलसंपयाओ देवासुर-मणुवसंपयकारणाणि च जाणदि ति भणिदं होदि' छदव्वाणमप्पिदभावेण अवढाणं अवट्ठाणकारणं च द्विदी णाम । दव्वदिदि-कम्मट्ठिदिकायटिदि-भवदिदि-भावढिदिआदिट्टिदि च सकारणं जाणदि* ति भणिदं होदि । दव्वक्खेत्त-काल-भावेहि जीवादिदव्वाणं मेलणं जुडी णाम । युति-बन्धयोः को विशेषः ? एकीभावो बन्धः, सामीप्यं संयोगो वा युतिः। तत्थ दवजुडी तिविहा- जीवजडी पोग्गलजुडी जीव-पोग्गलजुडी चेदि । तत्थ एकम्हि कुले गामे णयरे बिले गुहाए अडईए जीवाणं मेलणं जीवजडी णाम । वाएण हिंडिज्जमाणपण्णाणं व एक्कम्हि देसे पोग्गलाणं मेलणं पोग्गलजुडी णाम । जीवाणं पोग्गलाणं च मेलणं जीव. पोग्गलजुडी णाम । अधवा दव्वजुडी जीव-पोग्गल-धम्माधम्मकाल-आगासाणमेगादि छूटनेका नाम मोक्ष है, अथवा जिसके द्वारा या जिसमें मुक्त होते हैं वह मोक्ष कहलाता है। वह मोक्ष तीन प्रकारका है- जीवमोक्ष पुद्गलमोक्ष और जीव-पुद्गलमोक्ष । इसी प्रकार मोक्षका कारण भी तीन प्रकार कहना चाहिए। बन्ध बन्धका कारण, बंधप्रदेश, बद्ध एवं बध्यमान जीव और पुद्गल; तथा मोक्ष, मोक्षका कारण, मोक्षप्रदेश, मुक्त एवं मुच्यमान जीव और पुद्गल; इन सब त्रिकालविषयक अर्थोको जानता है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है । भोग व उपभोग रूप घोडा, हाथी, मणि व रत्न रूप सम्पदा तथा उस सम्पदाकी प्राप्तिके कारणका नाम ऋद्धि है। तीन लोकमें रहनेवाली सब सम्पदाओंको तथा देव, असुर और मनुष्य भवकी सम्प्राप्तिके कारणोंको भी जानता है; यह उक्त कथनका तात्पर्य है। छह द्रव्योंका विवक्षित भावसे अवस्थान और अवस्थानके कारणका नाम स्थिति है। द्रव्यस्थिति, कर्मस्थिति, कायस्थिति, भवस्थिति और भावस्थिति आदि स्थितिको सकारण जानता है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके साथ जीवादि द्रव्योंके सम्मेलनका नाम युति है । शंका-- यति और बन्धमें क्या भेद है ? समाधान-- एकीभावका नाम बंध है और समीपता या संयोगका नाम युति है। यहां द्रव्ययुति तीन प्रकारकी है- जीवयुति, पुद्गलयुति और जीव-पुद्गलयुति । इनमेंसे एक कुल, ग्राम, नगर बिल, गुफा या अटवीमें जीवोंका मिलना जीवयुति है। वायुके कारण हिलनेवाले पत्तोंके समान एक स्थानपर पुद्गलोंका मिलना पुद्गलयुति है । जीव और पुद्गलोंका मिलना जीव-पुद्गलयुति है । अथवा जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाश इनके एक आदि संयोगके * ताप्रती 'मणि रयणं संपयासंपय-' इति पाठः। * अप्रती '-ट्ठिदि य जाणदि ' इति पाठः । • आ-काप्रत्योः 'सामीणं', ताप्रती 'सामीणं (पं)' इति पाठः ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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