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________________ ३१२ ) छक्खंडागमे वग्गणाखंड ( ५, ५, ५९. भण्णमाणदव्वट्ठदाए पवुत्तिदसणादो। भासादव्वं णाम भासावग्गणाए.. एगो खंधो।तस्स जंगाहयमोहिणाणं तदोहिणिबद्धखेत्तपमाणमसंखज्जा दीव-समुद्दा। तक्कालो असंखेज्जाणि वस्साणि। किंतु तेजइयदव्व-कालेहितो भासाए खेत-काला असंखेज्जगुणा।तेजइयएगवग्गणपदेसेहितो अणंतगणपदेसे हि एमा भासावग्गणा णिप्पज्जदि। कधं तत्थ अइमहल्लक्खंधे वट्टमाणस्स ओहिणाणस्स बहुत्तं जुज्जदे? ण, तेजइयएगवग्गणाओगाहणादो असंखेज्जगुणहीणाए ओगाहणाए वट्टमाणभासाएगवग्गणाए पदेसं पडि अणंतगुणाए वि वट्टमाणस्स ओहिणाणस्स बहुत्तं पडि विरोहाभावादो। भासावग्गणाए ओगहणा तत्तो असंखेज्जगुणहीणा त्ति कुदो णव्वदे? सव्वत्थोवा कम्मइयसरीरदव्ववग्गणाए ओगाहणा। मणदग्ववग्गणाए ओगाहणा असंखेज्जगुगा। भासादव्ववग्गणाए ओगाहणा असंखेज्जगुणा। तेयासरीरदव्ववग्गणाए ओगाहणा असंखेज्जगुणा। आहारसरीरदव्ववग्गणाए ओगाहणा असंखेज्जगुणा । वेउव्वियसरीरदव्यवग्गणाए ओगाहणा असंखेगुणा । ओरालियसरीरदव्ववग्गणाए४ ओगाहणा असंखेज्ज---- समाधान-- नहीं, क्योंकि आगे कहे जानेवाले द्रव्यार्थता नामक अनुयोगद्वारमें द्रव्य शब्दकी रूढि वश वर्गणा अर्थ में ही प्रवृत्ति देखी जाती है। भाषा द्रव्यका अर्थ भाषावर्गणाका एक स्कन्ध है । उसे जो अवधिज्ञान जानता है उम अवधिज्ञानसे सम्बन्ध रखनेवाले क्षेत्रका प्रमाण असंख्यात द्वीप-समुद्र और कालका प्रमाण असंख्यात वर्ष है। किन्तु तैजसवर्गणा सम्बन्धी क्षेत्र और कालसे भाषावर्गणा सम्बन्धी क्षेत्र और काल असंख्यातगणा होता है। शंका-- तैजसकी एक वर्गणाके प्रदेशोंसे अनंतगुणे प्रदेशों द्वारा एक भाषावर्गणा निष्पन्न होती है। अतः ऐसे अत्यंत भारी स्कंधको विषय करनेवाला अवधिज्ञान बड़ा कैसे हो सकता है समाधान-- नहीं, क्योंकि तैजसकी एक वर्गणाकी अवगाहनासे असंख्यातगुणी हीन, अवगाहनाको धारण करनेवाली भाषावर्गणा यद्यपि प्रदेशोंकी अपेक्षा अनन्तगुणी होती है, फिर भी उसे विषय करनेवाले अवधिज्ञानके बडे होने में कोई विरोध नहीं आता। शंका-- भाषावर्गणाकी अवगाहना तैजसवर्गणाकी अवगाहनासे असंख्यातगुणी हीन होती है, यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? । समाधान-- वह “कार्मणशरीर द्रव्यवर्गणाकी अवगाहना सबसे स्तोक हो ी है। उसमें मनोद्रव्यवर्गणाकी अवगाहना असंख्यातगुणी होती है। उससे भाषाद्रव्यवर्गणाकी अवगाहना असंख्यातगुणी होती है। उससे तैजसशरीरद्रव्यवर्गणाकी अवगाहना असंख्यातगुणी होती है। उससे आहारकशरीरद्रव्यवर्गणाकी अवगाहना असंख्यातगुणी होती है। उससे वैक्रियिकशरीरद्रव्यवर्गणाकी अवगाहना असंख्यातगुणी होती है। उससे औदारिकशरीरद्रव्यवर्गणाकी ताप्रती 'पवुत्तिदसणादो। भासादववग्गणाए' इति पाठः। ताप्रती 'हीणाए वट्टमाण' इति पाठः । अ-आप्रत्यो: 'भासावग्गणाए ओगाहणाए', आप्रतौ ' भासावग्गणाओगाहणाए' इति पाठः । ४ ताप्रती · ओरालियसरीरवग्गणाए ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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