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छक्खंडागमे वग्गणा - खंड
नयोपनयैकान्तानां त्रिकालानां समुच्चयः ।
अविभ्राड्भावसंबन्धो द्रव्यमेकमनेकधा ।। ३२ ।।
एदि गाहाए जहा वेयणाए परूवणा कदा तहा एत्थ वि णिरवसेसा कायव्वा, भेदाभावादो । एसो गाहत्थो देसोहीए जोजेयव्वो, ण परमोहीए । कुदो णव्वदे? आइरियपरंपरागयसुत्ताविरुद्धवक्खाणादो । परमोहीए पुण दव्व खेत्त-काल-भावाणमक्कमेण बुड्ढी होदित्ति वत्तव्वं । कुदो ? अविरुद्धाइरिवयणादो । दव्वेण सह खेत्तकाला सणसण्णट्टमुत्तरगाहासुत्तं भणदि -
तेया- कम्मसरीरं तेयादव्वं च भासदव्वं च ।
३१० )
॥ ९ ॥
बोद्धव्वमसंखेज्जा दीव - समुद्दा य वासा य तेजइयणोकम्मसंचिदपदेसपिंडो तेजासरीरं नाम तं जाणंतो खेत्तदो असंखेज्जे दीवसमुद्दे जाणदि । कालदो असंखेज्जेसु वासेसु अदीदमणागयं च दव्वं जाणदि । अट्ठकम्माणं कम्मट्ठदिसंचओ कम्मइयसरीरं णाम । तं जाणंतो वि ओहिणाणी खेत्तदो असंखेज्जे दीव-समुद्दे कालदो असंखेज्जाणि वस्साणि जाणदि । णवरि तेजासरीरखेत्त
( ५,५, ५९.
नैगमादि नयोंके और उनकी शाखा उपशाख । रूप उपनयोंके विषयभूत त्रिकालवर्ती पर्यायोंका कथंचित् तादात्म्य रूप जो समुदाय है उसे द्रव्य कहते हैं ! वह कथंचित् एक रूप है और कथंचित् अनेक रूप है ।। ३२ ।।
इस गाथाका जैसा वेदनाखण्ड में कथन किया है उसी तरह यहां भी पूरी तरहसे कथन करना चाहिए; क्योंकि, उससे इसमें कोई भेद नहीं है इस गाथाके अर्थकी देशावधि ज्ञान में योजना करनी चाहिए, परमावधि ज्ञानमें नहीं ।
शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान- वह आचार्यपरम्परासे आए हुए सूत्राविरुद्ध व्याख्यानसे जाना जाता है । परमावधि ज्ञानमें तो द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी युगपत् वृद्धि होती है ऐसा यहाँ व्याख्यान करना चाहिए; क्योंकि, सूत्रके अविरुद्ध व्याख्यान करनेवाले आचार्योंका ऐसा उपदेश है । अब द्रव्यके साथ क्षेत्र और कालकी सूक्ष्म-स्थूलता बतल नें के लिए आगेका गाथासूत्र कहते हैंजहां तैजससरीर, कार्मणशरीर, तैजसवर्गणा और भाषावर्गणा द्रव्य होता है, वहां घनरूप असंख्यात द्वीप समुद्र क्षेत्र होता है और असंख्यात वर्ष काल होता है ॥ ८ ॥
तेजस नोकर्मके संचित हुए प्रदेशपिण्डको तैजसशरीर कहते हैं । उसे जानता हुआ क्षेत्रकी अपेक्षा असंख्यात द्वीप समुद्रोंको जानता है और कालकी अपेक्षा असंख्यात वर्ष सम्बन्धी अतीत और अनागत द्रव्यको जानता है । आठ कर्मों सम्बन्धी कर्मस्थितिके संचयको कार्मणशरीर कहते हैं उसे जानता हुआ भी अवधिज्ञानी क्षेत्रकी अपेक्षा असंख्यात द्वीप समुद्रोंको और कालकी अपेक्षा असंख्यात वर्षोंको जानता है । इतनी विशेषता है कि तेजसशरीर सम्बन्धी क्षेत्र
आ. मी. १०७. षट्खं. पु. ९, पृ. ३८.
अप्रतौ ' एवं ' इति पाठ:
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