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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
तिणि सहस्सा सत्त य सयाणि तेवत्तरि च उस्सासा । सोहवदि मुहुत्त सव्वेसिं चेव मणुयाणं ।। २७ ।।
तीसह दिवसो होदि । पण्णरसदिवसेहिं पक्खो होदि । बेहि पक्खेहि मासो । बेमासेहि उडू। तीहि उहि अयणं । अयणेहि बेहि संवच्छरो । पंचहि संवच्छ रेहि जुगो | सत्तरिको डिलक्ख छप्पण्णसहस्सकोडिव रिसेहिं पुव्वं होदि । वृत्तं च-पुव्वसदु परिमाणं सदर खलु कोडिसयसहस्साई । छप्पण्णं च सहस्सा बोद्धव्वा वस्सकोडीणं ॥ २८ ॥
७०५६०००००००००० । पुणो एदाणि एगपुव्ववस्साणि हवेद्वण लक्खगुणिदेण चउरासीदिवग्गेण गुणिदे पव्वं होदि । असंखेज्जेहि वस्सेहि पलिदोषमं होदि । योजनं विस्तृतं पल्यं यच्च योजनमुच्छ्रितम् ।
आसप्ताहः प्ररूढानां केशानां तु सुपूरितम् ।। २९ ।। ततो वर्षशते पूर्णे एकैके रोम्णि उद्धृते । क्षीयते येन कालेन तत्पल्योपममुच्यते
( ५,५, ५९.
॥ ३० ॥
इति वचनात् संखेज्जेहि वि वस्सेहि ववहारपल्लं होदि, तमेत्थ किण्ण घेष्पदे ?
सब मनुष्योंके तीन हजार सात सौ तिहत्तर उच्छ्वासोंका एक मुहूर्त होता है ।। २७ ।।
तीस मुहूर्तका एक दिन होता है । पन्द्रह दिनका एक पक्ष होता है। दो पक्षोंका एक महीना होता है । दो महीनेकी एक ऋतु होती है। तीन ऋतुओंका एक अयन होता है ! दो अयनोंका एक वर्ष होता हैं। पांच वर्षका एक युग होता है । सत्तर लाख करोड और छप्पन्न हजार करोड वर्षोंका एक पूर्व होता है । कहा भी है-
सत्तर लाख करोड और छप्पन्न हजार करोड वर्ष प्रमाण पूर्वका परिमाण जानना चाहिए ।। २८ ।। ७०५६००००००००००।
पुनः एक पूर्वके इन वर्षोंको स्थापित कर एक लाखसे गुणित चौरासी के वर्गसे गुणा करनेपर पर्व होता है । असंख्यात वर्षोंका पल्योपम होता है ।
शंका -- एक योजन व्यासवाला और एक योजन ऊँचा पल्य अर्थात् कुशूल लेकर उसे एक दिन से लेकर सात दिन तकके उगे हुए केशोंसे भर दे । अनन्तर पूरे सौ-सौ वर्ष होनेपर एक-एक रोम निकले, जितने कालमें वह खाली होगा उतने कालको पल्योपम कहते हैं । २९-३०। इस वचनके अनुसार संख्यात वर्षोंका भी एक व्यवहार पल्य होता है । उसका ग्रहण यहां क्यों नहीं करते ?
स. सि. ३ - ३१ ( उद्धृता). जं. प १३ - १२. प्र. सारो. १३८७. पूर्वं चतुरशीतिघ्नं पूर्वांगं परिभाष्यते । पूर्वांगताडितं तत्त् पर्वांगं पर्वमिष्यते । आ. पु. ३, २१९. * प्रमाणयोजनव्या सस्वावगाहविशेषवत् । त्रिगुणं परिवेषेण क्षेत्रं पर्यन्तभित्तिकम् । सप्ताहान्ताविरोमाग्रैरापूर्य कठिनीकृतम् । तदुद्वार्यमिदं पल्यं व्यवहाराख्यमिष्यते । एकैकस्मिस्ततो रोम्णि प्रत्यब्दशत मुद्धृते । यावतास्य क्षयः कालः पल्यं व्युत्पत्तिमात्रकृत् । ह पु. ७, ४७-४९. काप्रती 'संखेज्जेहिम्मि' इति पाठ: ।
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