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२८६) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
(५, ५, ५०. सर्वनयविषयाणामस्तित्वविधायकत्वात्। तत्त्वं श्रत्तं ज्ञानम् । एवं तच्चं ति पदं ।।
अभूत् इति भूतम्, भवतीति भव्यम् भविष्यतीति भविष्यत्, अतीतानागत-वर्तमा. नकालेष्वस्तीत्यर्थः । एवं सत्यागमस्य नित्यत्वम् । सत्येवमागमस्यापौरुषेयत्वं प्रसजतीति चेत्-न, वाच्य-वाचकभावेन वर्ण-पद-पंक्तिभिश्च प्रवाहरूपेण चापौरुषेयत्वाभ्युपगमात् । एतेन हरि-हर-हिरण्यगर्भादिप्रणीतवचनानामागमत्वमप्राकृतं द्रष्टव्यम् । भूद भव्वं भविस्सं त्ति गदं । वितथमसत्यम्, न विद्यते वितथं यस्मिन् श्रुतज्ञाने तदवितथम्' तथ्यमित्यर्थः । अवितथं त्ति गदं। दुईष्टिवचनैर्न हन्यते न हनिष्यते नाबधीति अविहतं श्रुतज्ञानम्। अविहदं ति गदं । अशेषपदार्थान् वेत्ति वेदिष्यति अवेदीदिति वेदः सिद्धान्तः । एतेन सूत्रकंठग्रन्थकथाया वितथरूपायाः वेदत्वपास्तम् । वेदं ति गदं । न्यायादनपेत्तं न्याय्यं श्रुतज्ञानम् । अथवा, ज्ञेयानतारिवान्न्यायरूपत्वाद्वा न्यायः सिद्धान्तः । णायं ति गदं । वचनार्थगतदोषातीतत्वादच्छुद्धः सिद्धान्तः । एवं सुद्धं ति गदं । सम्यग्दृश्यन्ते परितत्त्व श्रुतज्ञान है । इस प्रकार तत्त्वका विचार किय ।
आगम अतीत कालमें था इसलिए उसकी भूत संज्ञा है, वर्तमान काल में है इसलिए उसकी भव्य संज्ञा है, और वह भविष्य कालमें रहेगा इसलिए उसकी भविष्यत् संज्ञा है। आगम अतीत अनागत और वर्तमान कालमें है; यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इस प्रकार वह आगम नित्य है।
शंका- ऐसा होनेपर आगमको अपौरुषेयताका प्रसंग आता है ?
समाधान - नहीं, क्योंकि, वाच्य-वाचकभावसे तथा वर्ण, पद व पंक्तियोंके द्वारा प्रवाह रूपसे चला आनेके कारण आगमको अपौरुषेय स्वीकार किया है।
___इस कथनसे हरि, हर और हिरण्यगर्भ आदिके द्वारा रचे गये वचन आगम है; इसका निराकरण जान लेना चाहिये। इस प्रकार भृत, भव्य और भविष्यत्का कथन किया। वितथ
और असत्य ये समानार्थक शब्द हैं। जिस श्रुतज्ञान में वितथपना नहीं पाया जाता वह अवितथ अर्थात् तथ्य है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इस प्रकार अवितथका कथन किया। मिथ्यादृष्टियोंके वचनों द्वारा जो न वर्तमानमें हता जाता है, न भविष्यमें हता जा सकेगा, और न भूतकालमें हता गया है वह अविहत -श्रुतज्ञान है। इस प्रकार अवितथका कथन किया । अशेष पदाओंको जो वेदता है वेदेगा और वेद चुका है, वह वेद अर्थात् सिद्धान्त है। इससे सूत्रकण्ठों अर्थात् ब्राह्मणोंकी मिथ्यारूप ग्रन्थ कथा वेद है, इसका निराकरण किया गया है। इस प्रकार वेदका कथन किया। न्यायसे युक्त है, इसलिये श्रुतज्ञान न्याय्य कहलाता है। अथवा ज्ञेयका अनुसरण करनेवाला होनेसे या न्यायरूप होनेसे सिद्धान्तको न्याय्य कहते हैं। इस प्रकार न्यायका कथन किया। __ वचन और अर्थगत दोषोंसे रहित होनेके कारण सिद्धान्तका नाम शुद्ध है। इस प्रकार
* अप्रतौ ' नावधीयति ' इति पाठः 8 अप्रतो . ज्ञायानुसारि-, आप्रती । ज्ञयासारिः, काप्रती 'ज्ञयाऽसारि-, ताप्रती ' ज्ञयासा ( ज्ञेयानुसा ) रि-' इति पाठः । ४ प्रतिषु ' णेयं ' इति पाठः ।
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