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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
(५, ५, ५०. पावयणं पवयणीयं पवयणी गदीस यग्गणवा आदा परंपरलद्धी अणुत्तरं पवयणं पवयणी पवयणद्धा पवयणसणियासो णयविधी णयंतरविधी भंगविधी भंगविधिविसेसो पुच्छाविधी पुच्छाविधिविसेसों तच्चं भूदं भव्वं भवियं अवितथं अविहवं वेदं गाय सुद्धं सम्माइट्ठी हेदुवादो णयवादो पवरवादो मग्गवादो सुदवादो परवादो लोइयवादो लोगुत्तरीयवादो अग्गं मग्गं जहाणुमग्गं पुव्वं जहाणुपुव्वं पुन्वादिपुव्वं चेदि ॥ ५० ॥ _एदे सुदणाणस्स इगिदालीसं परियायसहा । संपहि एदेसि पुध पुध परूवणं कस्सासो। तं जहा- उच्यते भण्यते कथ्यते इति वचनं शब्दकलापः, प्रकृष्टं वचनं प्रवचनम् । कुतः प्रकृष्टता ? पूर्वापरविरोधादिदोषाभावात् निरविद्यार्थप्रतिपादनात अविसंवादात प्रकृष्टत्वम् । प्रवचने प्रकृष्टशब्दकलापे भवं ज्ञानं द्रव्यश्रुतं वा प्रावचन* नाम । कथं द्रव्य श्रुतस्य वचनात्मकस्य वचनादुत्पत्तिः ? न एष दोषः वचनर
प्रावचन, प्रवचनीय, प्रवचनार्थ, गतियोंमें मार्गणता, आत्मा, परम्परा लब्धि, अनुत्तर, प्रवचन, प्रवचनी, प्रवचनाद्धा, प्रवचनसंनिकर्ष, नयविधि, नयान्तरविधि. भंगविधि, भंगविधिविशेष, पृच्छाविधि, पच्छाविधिविशेष, तत्व, भूत, भव्य, भविप्यत्, अवितथ, अविहत, वेद, न्याय्य, शुद्ध, सम्यग्दृष्टि, हेतुवाद, नयवाद, प्रवरवाद, मार्गवाद, श्रुतवाद, परवाव, लौकिकवाद, लोकोतरीयवाद, अग्रय, मार्ग, यथानुमार्ग, पूर्व, यथानुपूर्व और पूर्वातिपूर्व, ये श्रुतज्ञानके पर्याय नाम हैं। ५० ।
ये श्रुतज्ञानके इकतालीस पर्याय शब्द हैं। अब इनका पृथक् पृथक् कथन करते हैं। यथा- 'वच्' धातुसे वचन शब्द बना है । ' उच्यते भण्यते कथ्यते इति वचनम् ' इस व्युत्पत्तिके अनुसार जो कहा जाता है वह वचन है । इस प्रकार वचन पदसे शब्दोंका समुदाय लिया जाता है। प्रकृष्ट वचनको प्रवचन कहते है।
शंका - प्रकृष्टता कैसे है ?
समाधान - पूर्वापरविरोधादि दोषसे रहित होनेके कारण, निरवद्य अर्थका कथन करनेके कारण, और विसंवादरहित होने के कारण प्रकृष्टता है।
प्रवचन अर्थात् प्रकृष्ट शब्दकलापमें होनेवाला ज्ञान या द्रव्यश्रुत प्रावचन कहलाता है । शंका - जब कि द्रव्यश्रुत वचनात्मक है तब उसकी वचनसे ही उत्पत्ति कैसे हो सकती है?
समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि श्रुत संज्ञाको प्राप्त हुई वचनरचना चूंकि वचनोंसे कथंचित् भिन्न है, अतएव उनसे उसको उत्पत्ति मानने में कोई विरोध नहीं आता।
काप्रतौ ‘पवणीय ' इति पाठः 10 तातो 'भूद भवियं भव्वं ' इति पाठः। . अ-आ-काप्रतिषु ‘णामं ' इति पाठः 1 * अ-आ-काप्रतिषु ' ज्ञानं द्रव्यश्रुतं वा प्रवचन, ताप्रती ज्ञानं । द्रव्यश्रुत्तं वा प्रवचनं इति पाठ।
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